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________________ से I (१) मुक्त- आमा : - कर्म - बंधनों रहित, जन्म-मरण रुप पर्यायों से मुक्त, आत्मीय स्वरुप को प्राप्त आत्मा विशुद्ध स्वरुप है | विशुद्ध, स्वरुप एवं विशुद्ध उपयोग सहित है । जहाँ न आवरण है, न अन्तराय है, और न मोह ही है । आवरणों से रहित आत्मा केवलज्ञान, केवलदर्शन और उत्कृष्ट तेजस्वरुप हो जाता है । अन्तराय से रहित आत्मा उत्कृष्ट - बल का धनी हो जाता है । और मोहरूपी रज से रहित ज्ञाता हो जाता है, ज्ञेय भूत पदार्थों को जानने लगता हैं । 33 यही नहीं, अपितु आत्मा ज्ञाता होने के कारण सव्वगदो, जिणवसहो, केवलणाणी, अरह ंत, सिद्ध, श्रीमान्, स्वयंभू, शंभव, विश्वात्मा, विश्वलोकेश, विश्वविद्, अजन्मा, परमेष्ठी, शुद्ध, बुद्ध, प्रबुद्धात्मा, सिद्धार्थ, सर्वात्मा, प्रभूतात्मा आदि एक हजार आठ-गुण युक्त कहलाने लगते है । मुक्तआत्माए अनंत हैं । बद्ध - आत्मा :- जो आत्मा मिथ्यात्व अविरति, प्रमाद, कषाय और योग के कारण बद्ध है, वह बद्ध - आत्मा है । बद्ध-आत्मा मिथ्यात्व आदि के कारण संसार में परिभ्रमण करता रहता है । आत्मा कोधादि - आश्रवो में प्रवृत्त होता हुआ कम का संचार करता रहता है । आत्मा के साथ बंधे हुए कर्म अध्रुव हैं, अनित्य हैं, शरणरहित है, दुःख है, दुःख के कारण हैं । 34 आत्मा रागादि से युक्त होता हुआ नवीन कर्मों को बद्ध करता है । जब तक मिथ्यात्व आदि भाव विपाक - अवस्था को नहीं प्राप्त होते हैं, तब तक यह आत्मा क Jain Education International से बद्ध रहता है । इसलिए आत्मा को बद्धआत्मा कहा गया है । बद्ध - आत्माएं, मुक्तआत्माओं से अनंतगुणी है 135 आत्मा का परिणाम :- आत्मा ज्ञान से ज्ञाता है, ज्ञेय का अभेद कर्ता है । जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश जगत् प्रकाशित होता है तथा दीपक से घट-पट आदि का प्रकाशक कि है । उसी तरह प्रत्यक्ष दीखनेवाले पदार्थो का प्रकाशक आत्मा है 36 । जब इस आत्मा का चिदानंद - स्वरूप प्रकट होता है, तब आत्मा परमात्मा, शिव, सिद्ध कहलाता है । राग-द्वेष, - मोह आदि से रहित समभाव आत्मा का अभिन्न परिणाम है । आत्मा का समभाव धर्म है । 37 परंतु जब यह आत्मा शुभ से शुभ रूप और अशुभ से अशुभ परिणमन करता है तथा शुद्ध से शुद्ध रूप परिणमन करता है । यह भी आत्मा का परिणमन है । इस परिणमन से ही आत्मा विविध पर्यायों को प्राप्त करता है । आत्मा की प्रभुत्व शक्ति :- आत्मा बंधरहित, पर के स्पर्श रहित, अन्यपने-रहित, विशेष-रहित, चञ्चलता-रहित और अन्य पदार्थों के संयोग से रहित आत्मा प्रभु शक्ति वाला है । प्रभु सत्तायुक्त आत्मा ज्ञानी है, जो अनंत पुद्गल - परमाणुओं को जानता हुआ भी पर द्रव्य और पर पर्याय रूप न परिणमन करता है, न उन्हें ग्रहण करता है और न उनमें उत्पन्न ही होता है । 38 आत्माका बंधन For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005568
Book TitleJambudwip Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages190
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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