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एवं मुक्ति रूप परिणाम स्वयं आत्मा का है । अन्य किसीका नहीं है । सुख, दुःख, पीडा, जन्म, मरण, इन्द्रियों, उपसर्ग, मोह, विस्मय, निद्रा, क्षुधा, तृषा, कर्म, नोकर्म, . आर्तध्यान, रौद्र-ध्यान, धर्म और शुक्ल ध्यान आदि से रहित आत्मा विशुद्ध है । ज्ञानादिक चार गुणरूप स्वभाव से सहित है, अक्षय है, अविनाशी है, अभेद्य है, अनिन्द्रिय है, अनुपम है, पुण्य-पाप से निर्मुक्त है, पुनरागमन से रहित है 139
प्रमाण की दृष्टि से आत्मा :- जैनदर्शन # "" 'स्व पर व्यवसायि ज्ञानं प्रमाणम् "40 अर्थात् स्वः और पर-व्यवसायरूप ज्ञान को प्रमाण माना है । शुद्ध निश्चयनयसे आत्मा को विशुद्ध ज्ञान रूप माना गया है । आत्मा ज्ञान है और ज्ञान आत्मा है ऐसा भी कथन किया गया है । इसलिए आत्मा स्व और पर रूप है । आत्मा का स्वरूप भी ज्ञान और दर्शन से युक्त भी निरूपित किया जाता है । इसलिए आत्मा ज्ञान एवं दर्शन से युक्त स्व-पर- प्रकाशक है ।
प्रमाण का कथन भी दो दृष्टियों से किया जाता है । प्रत्यक्ष और परोक्ष | जब आत्मा का प्रत्यक्ष प्रमाण से निरूपण किया जाता है, तब आत्मा अवधि, मनः पर्यय और केवलज्ञान स्वरूप होता है और जब आत्मा को परोक्ष-दृष्टि से देख। जाय तो शरीरबद्ध, इन्द्रियज्ञान - जन्य आत्मा पदार्थों के
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गुण एवं उनके विविध पर्यायोंको न जान सकता है और न देख सकता है ।
नयदृष्टि से आत्मा :जैनदर्शन में व्यवहारrय और निश्चयनय ये दो नय माने गये हैं । इसके अतिरीक्त सात नय भी है । परन्तु सही आत्मा को इन दोनों को आधार लेकर कहा जा रहा है । निश्चयनय भूतार्थ- सत्यार्थ है और जो सत्यार्थ होता है, वह विशुद्ध कहा जाता है 41 । इसलिए यह नय आत्मा के विशुद्ध ज्ञान एवं दर्शन को सब कुछ मानता है । निश्चयनय अभेद है, सम्यग्दर्शन, सम्यज्ञान और सम्यक्चारित्र यद्यपि भेंद रूप हैं, पर इन तीनों की जो दृष्टि है, वह अभेद है । इसलिए ये तीनों आत्मा के
हैं । पर इन तीनों को भेद दृष्टि से कथन किया जाता है, तब ये तीनों पृथक्पृथक् होने से व्यवहारनय के विषय बन जायेंगे ।
उत्पाद - व्यय - और धौव्य दृष्टि से आत्मा :- पर्याय के बिना पदार्थ नहीं होता, पदार्थ पर्याय बिना नहीं रहता । 42 द्रव्य, गुण और पर्याय आत्मा के अस्तित्व-गुण को अभिव्यक्त करते हैं । आत्मा एक पर्याय से दूसरे पर्याय को प्राप्त होता है, इसलिए यह आत्मा उत्पाद और व्यय रूप है, तथा एक पर्याय से दूसरे पर्याय में जाने पर भी आत्मा का विनाश नहीं होता है, इसलिए अध्रुव है 143
संक्षेप में यह कथन किया जा सकता है। कि आत्मा ज्ञान - स्वरूप है, दर्शन, चारित्र,
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