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________________ स्वीकार किये आत्मा के प्रति संदेह भी संभव नहीं है, क्योंकि संदेह एक विचार है और विचार, बिना विचारक अर्थात् चेतन सत्ता के संभव नहीं है। पाश्चात्य विचारक देकार्त ने कहा था I doubt therefore I am. अर्थात् आत्मा के प्रति संदेह भी आत्म अस्तित्व को स्वीकार किये बिना संभव नही है। भगवान महावीर ने अपने प्रथम शिष्य गौतम को भी यही बात समझाई थी । विशेषावश्यक भाष्य के गणधरवाद में इसका उल्लेख है । परमकृपालुदेव ने भी आत्मसिद्धिशास्त्र में यही बात कही है। फिर भी यह ज्ञातव्य है कि आत्मा की यह सत्ता अनुभूतिगम्य है, तर्क या शब्द गम्य नहीं है। उपनिषद् और जैनागम आचारांग आदि इसीका समर्थन करते हैं। आत्मा है किन्तु शब्दों के माध्यम से आत्मा सम्यक् निर्वचन संभव नहीं है । श्रीमद्जीने आत्मसिद्धिशास्त्र में एवं पूज्य श्री ने अपने प्रवचनों में इसे विस्तार से स्पष्ट किया है । पुनः आत्मा को नित्य तथा कर्ता भोक्ता माने बिना स्मृति और बंध मोक्ष आदि संभव नहीं है। आत्मा का कर्ता और भोक्तापना कर्म सिद्धान्त का आधार है। यह सत्य है कि आत्मा तत्त्वतः शुद्ध, बुद्ध है, किन्तु संसारदशा में वह कर्म-मल से युक्त है यह भी उतना ही सत्य है । · उदाहरण के लिए पानी - पानी है और मट्टी-मट्टी है, पानी अलग है और मट्टी अलग है। फिर भी पानी में मट्टी है। इसी प्रकार आत्मा अलग है, कर्म अलग है फिर भी वे दोनो एक दूसरे है । आत्मा अलग है और क्रोधादि कषाय भाव अलग है, फिर भी वे आत्मा में है। उनके शोधन का प्रयत्न मोक्षमार्ग और पूर्ण शुद्धि मोक्ष है। आत्मसिद्धिशास्त्र का यही सार है, जिसे पूज्यश्री ने अपने प्रवचनों के माध्यम से जन साधरण के लिए आत्मसात करने की दृष्टि से सरलतम बना दिया है। इसमें तत्त्वज्ञान की कठिन पेहलियों को सरल ढंग से समझाया है, ये वस्तुत: उनकी अन्तरात्मा के निकले हुए उद्गार है। भाषा सरल एवं बोधगम्य है । पूज्यश्री से ऐसी ज्ञानप्रसादी सदा मिलती रहे और जन-जन उसका आस्वादन कर आत्म तृप्त होता रहे यही शुभभावना है। Jain Education International 卐 XV For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.005521
Book TitleAtmasiddhishastra Part 01
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
AuthorBhanuvijay
PublisherSatshrut Abhyas Vartul
Publication Year2011
Total Pages492
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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