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॥ ३० ॥
एवं नवहि पहिं निष्फष्णो सिद्धचकवरमंतो ॥ सोहइ मणम्मि जेर्सि, तेसिं सया कज्जसिद्धीओ जिणसासणणिस्संद, संतिदयं लद्धिदाणसामत्थं ॥ उवसग्गहरं सुहयं वंदे सिरिसिद्धचकमहं सिरिसिद्धचकभत्ती, अनियाणा नाणपुव्विया विहिया ॥ निव्ववहाणा सुद्धा, सयलिच्छियदाणकष्पलया ॥ ३१ ॥ सिरिनवपयपसाया, भवे भवे मिलउ विहियकलाणा ॥ सव्त्रत्थ जओ विजओ, बोही निव्वाणसुक्खदया अन्महिओ चक्काओ, निवसेहरचक्कवट्टिणो एसो ॥ सिरिसिद्धचकमंतो, हरउ सया सयलविग्घाई
॥ ३२ ॥
पवरम्मि थंभतित्थे, अहुणा खंभायनामसुपसिद्धे ॥ भव्वजिणायक लिए, पत्ररायरियाइजम्मथले
तवगच्छंबर दिणयर, जुगवर सिरिनेमिसूरिसीसेणं ॥ परमेणारिएणं, सिरिथंभणपासभत्तेणं
[ श्री विनयपद्मसूरिकृत
सुजुक्खिमि वरिसे सिरिने मिनाह जम्मदिणे ॥ सिरिरिमंतसरणं, किच्चा सव्वोवसग्गहरं
सिरिसिद्धचकभत्ति, लहिऊणं नटुकम्मवाबाहा ॥ जिणसासणपसत्ता, सिद्धिसुहाई पसाहंतु
॥ समाप्ता श्रीसिद्धचक्रद्वात्रिंशिका |
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सिरिसिद्धचकभावा, रइया दार्तिसिया विसालत्था ॥ लच्छीपपढण, पढणाइपरायणा भव्वा
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