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આચાર્યશ્રી આનંદશંકર ધ્રુવ : દર્શન અને ચિંતન
डाव्य :
દાસ્યભક્તિ
मने चाकर राखोजी (टेक) चाकर रहसुं बाग लगासुं, नित उठ दरशन पासुं, वृन्दावनकी कुंज्जगलिनमें, तारी लीला गासुं. - हरेहरे सब बाग बनाउं, बिच बिच राखो बारी, साँवलिया के दरशन पासुं, पहिर कुसुम्बी सारी. __ - योगी आया योग करणको, तप करणे संन्यासी, हरिभजनको साधु आवे, वृन्दावनके वासी. - मीरां के प्रभु गहरगभीरा, हृदय धर्यो जी धीरा, आधि रात प्रभु दरशन दे है, प्रेमनदीके तीरा. -
- मीरा
अब तो० १
अव्य: १० આત્મનિવેદન
(प्रभात-झिंझोटी) अब तो मेरा रामनाम, दूसरा न कोई (टेक) माता छोडे पिता छोडे, छोडे सगा सोई ; साधुसंग बेठ बेठ, लोकलाज खोई. संत देखि दोड आई, जगत देखि रोई ; प्रेमआंसु डार डार अमरवेल बोई. मारगमें तारण मिले, संत राम दोई ; संत सदा शिश उपर राम हृदय होई. अंतमें से तंत काढयो, पिछे रही सोई ; राणे मेल्या बिखका प्याला, पीने मस्त होई. अब तो बात फेल गई, जाणे सब कोई ; दास मीरां लाल गिरधर, होनीती सो होई..
अब तो० २
अब तो० ३
अब तो०४
अब तो० ५
- मीरा
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