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________________ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org इनसारिनु सामई त्यो । सं । २४। सात खंड सात मु इनप्रभ करते निस२५ सात खंडन] सुपती वातो! पुण्य प्रशमनं साधना मारामा तइंडल गुगाई | सात कटिकन गोस्वामी था। सी २७] सात इषड सुनिर राया। सद्यो जान नायक थायो । सा२०] साइड सुसाइनर जे हो । सप्त हाथी नाम ही सारा नाईमा लावता पुण्य कानुन जाई। सरत्या साधनाला काल घर एप नेपाल र सविस्तर ज्ञानी । सम होइन केवल न्यानो ३२ जेह जोडी गुहा जिन नए गाइति हनुमु एप काई लक्ष्यं न जाए जो डावनगाव करार पद्मावाचक नकही तिहन रियूती हाथ वालही काराको रासी बड़ा कदा सो सोरसिंघवा महाराज तिकताब का ३६ संघवी त जरजिनवारना दोसी) सा३७] सागासुतं विरुष नाद करना कनर रायनोरो सोनानी सुनी सारे सकल संघनिजइजर को १०३ । इति श्री श्री करास संत श्रीरख संघवी रुषन दा सन रासनीयलाई श्रीमारास શ્રી શ્રેણિકરાસની પ્રતનું અંતિમ પૃષ્ટ. કવિ ઋષભદાસ કૃત ‘શ્રી શ્રેણિક રાસ’
SR No.005453
Book TitleRas Rasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuben
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year2011
Total Pages570
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size12 MB
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