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एसा दील कहता हैं की आप जैसे विद्ववर्य वयो. वृद्ध मुनिरत्नकी सेवामें रह कर, अनुभव रत्नांका संचय करुं। पर आपश्रीका समागम मिले कैसे ? साधु-साध्बी शिबिरके लिये, आप अपना संक्षिप्त मंतव्य किसी जैन पत्रमें, जैन, जैनकल्गाण आदिमेंसे किसी में दिलाये, तो बडी कृपा होगी।
श्रमण भगवान महावीरका मुखव स्त्रिकावाला चित्र मैंने कल्याण गीता प्रेस, गोरखपुरके संत अंकमें देखा। उसके बाद लुधियानासे प्रकाशित एक पुस्तिकाके टाईटल पेईज पर देखा तो मुझे बडा खेद हुआ।
सांप्रदायिय लोग भगवानका अपना मन चाहा रुप दे देते हैं। वे भगवानको अपनी बुद्धिका गुलाम बनाना चाहता हैं। अगर आज भगवान महावीर अवतरीत होकर यहां आ बाय, तो सांप्रदायिक लोग, उन्हे माननेसे इन्कार कर दे, सचमूच सांप्रदायिकता कितनी बेहहीरी चीज हैं। आपका स्वास्थ्य अच्छा होगा। कृपादृष्टि रखे।
लि. मुनि नेमिचंद्र
૧૪, ગણેશવાડી
पुना-४, ता. ८-८-१५ प्रिय SAINTS,
ઉપદેશસરિતા તથા જીવનનું ઉષ્પકરણ મળ્યા. સાતમા કેને ઉત્તરાર્ધ.
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