________________
૧૯૮
' इति श्री ज्ञानबिन्दु प्रकरणं । संवत् युग रस शैलशशीवत्सरे शाकेंकनेत्र रसचन्द्र प्रवर्त्तमाने फाल्गुनमासे कृष्णपक्षे दशमीतिथौ भृगुवासरे संपूर्ण कृत । श्रीरस्तु | कल्याण मस्तु । शुभं भवतु लेखक - पाठकयोर्भद्रवती-भवतात् । छ । श्री श्री श्री ।'
इस लेख के अनुसार यह प्रति शक संवत् १६२९ और विक्रम संवत् १७६४ में लिखी गई हैं। जो उपाध्यायजी के स्वर्गवास (विक्रम संवत् १७४३) के २१ वर्ष बाद की लिखी हुई है । यही कारण है कि इस प्रति के पहले आदर्शों का वंश विस्तृत न हुआ था । अत एव इस का सम्बन्ध मूल आदर्श से अधिक होने के कारण इस में अशुद्धि भी बहुत कम हैं ।
Jain Education International
000
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org