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________________ ૩૨૧ वे याकौं मानें नही, एहवासौं रस लींन . सितर कोडा कोडिलौं, बंदीखाने दोन. ४ बंदीवान समान नृप, करि राख्यो उंह ठोरः याको जोर चले नही, उनही के सिर मोर. ५ वे जो आग्या देतो सोई कहैं इह काम; आप न जाने भूपमें, जैसें हें चित भ्रांम. ६ उनकी चेरी सों रचे, तजि निज नारि निधान कहो स्वामी कौन नृप, जिनको असो ग्यान. ७ कौंन देश राजा कवन, को रिपु को कुलनार; को दासी गुरु कृपा करी, याको कहो विचार. ८ પ્રશ્ન ૭૩ મું–આને ઉત્તર ગુરૂએ શે આ ? उत्तर-शु३ वायः ॥ हागुरु बोले समकित विना, कौंउ पावै नाही; सर्वे रिद्ध इक ठौर हैं, काया नगरी मांही ९ काया नगरी जीव नृप, अष्ट कर्म अरि जोर; अग्यांन भावदासी रचे, पगे विकी और. १० विष बुध जिहां नहीं, तिहां स्कमतिको चाह; जो स्कमति सो कुलत्रीया, येह याको निरवाह. ११ आप परायै वसिपरे, आपा मारयौ खोय; आप आप जानै नही, कहीं आप क्यों होय. १२ आप न जानें आपको, कौंन बतावनहार; तवै सिष्य समकित लयौं, जान्यौं सबै विचार. १३ यह गुरु शिष्य चतुर्दशी, सुनहु सबै मन लाय; कहैं दास भगवंतके, समता के घर आय. १४ અહિંયાં જીવરૂપી રાજા કુમતિના સંગે મેહને વશ પડે, મેહ રાજાએ સંસારરૂપી જેલખાને નાખે જેથી પિતાની સત્તા દબાણી, તે Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005266
Book TitlePrashnottar Mohanmala Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlalmuni
PublisherPrem Jinagam Samiti Mumbai
Publication Year1981
Total Pages570
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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