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૧૫૬ હસ્તપ્રતવિદ્યા અને આગમ સાહિત્ય: સંશોધન અને સંપાદન पादटिप १. कल्पसूत्र (गुजराती भाषांतर साथे), संपा. पुण्यविजयजी, साराभाई मणिलाल
नवाब, अहमदाबाद, ई. स. १९५२ । २. अन्तिम पृष्ठ पर 'क्षेत्रज्ञ' शब्द के विविध प्राकृत रूपों की जो चर्चा की गयी है
उसके लिए देखिए लेखक का पुस्तक 'प्राचीन अर्धमागधी की खोजमें' का अध्याय नं. ६, (१९९१-९२)। विस्तार के लिए देखिए मेरी पुस्तकें - Restoration of the Original Language of Ardhamagadhi
Texts, 1994. ४. परंपरागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अर्धमागधी, अध्ययन १४ (१९९५)।
मध्यवर्ती णकार के स्थान पर मूल नकार ही भाषा की प्राचीनता का द्योतक माना जाना चाहिए।
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