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________________ Cra યક્ષરાજશ્રી માણિભદ્રદેવ Jain Education International उ गायो गायो गायो रे माणिभद्रवीर गुण गायो । (2) अखंड प्रताप अद्भुत महिमा, आनंद धन वरसायो । आराधन कर इच्छित फलने, नरनारी सहु पायो रे ॥ माणि० (२) रवि - मंगल - गुरूवार मनोहर, सुद पांचम दिन ठायो । आठम चौदस आयंबिल करतां, वीर साधता छायो रे || माणि० (३) भूत-प्रेत- शाकन- अरिदल, शमन करे क्षण मायो । शत्रु ग्रह रोग टल जावे, सुरतरु सम सरसायो रे ॥ माणि० - (४) आगम उद्धारक आनंदसागरजी, ज्ञानी अध्यातम पायो । आचामल तपोनिधिपूरा चन्द्रसागर गुण गायो रे || माणि० (५) मालवदेश उद्धारक ज्ञानी, धर्मसागर गुरु रायो । व्याकरण विशारद धीर गम्भीरा, महोदयसागर दीपायो रे ॥ माणि० (६) शांत स्वभावी करुणासागर, दर्शनसागर हरखायो । संगठन प्रेमी अपूर्व उपदेशी नित्योदय वरसायो रे ॥ माणि० (७) मुंलुंड सर्वोदय नगरीमें, पार्श्वप्रभु सु पसायो । . स्वर्गतुल्य अरु देव विमानसम, मंदिर सुन्दर पायो रे ॥ माणि० (c) विक्रम संवत दो सहस्र अरु, त्रेपन वर्ष सुहायो । श्रावण शुक्ला पंचमी दिवसे, रचना रम्य रचायो रे ॥ माणि० (९) नाहर और शेठ परिवारे, रचना रम्य बनायो । सुखराज पृथ्वीराज माणकचंद, मांगीलाल हरखायो रे ॥ माणि० (१०) लक्ष्मी केरो लाहो लीधो उपधान तप है करायो । चन्द्राननसूरि चौमासामें, मंगल तूर बजायो रे ॥ माणि० For Private & Personal Use Only 545 www.jainelibrary.org
SR No.005141
Book TitleYakshraj Shree Manibhadradev
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year1997
Total Pages860
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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