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તપાગચ્છાધિષ્ઠાયક
नैवेद्य पूजा दोहा
नैवैद्य पूजा वीरनी, करतां आनन्द होय । माणिभद्र गुण गावतां, रिद्धि पावे सहु कोय ॥१॥
ढाल आठमी
राग - पणिहारी आठमी पूजा प्रेमसु, भवि करीयेजी। निर्मल आतम होय, प्राणीजी ॥
संवत सतरे तेतीसमें, भवि करीयेजी । महासुद पांचम जाण, उद्धारीजी ॥
आगलोड नगरे स्थापना भवि करीयेजी ।
शांतिसोम सूरि जाण, प्राणीजी ।।
प्रत्यक्ष कीधा माणिभद्रजी, भवि प्राणीजी ।
अट्ठम तप धरनार, प्राणीजी ॥ .
मंत्र जपे सवालक्षसु भवि प्राणीजी ।
ॐ ह्रीं श्रीं युत जाण, प्राणीजी ॥
दर्शन नित्योदय मिले भवि प्राणीजी ।
चन्द्रानन आधार, प्राणीजी ॥
मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं श्री माणिभद्राय क्षेमंकराय, कल्याणकराय अखंड सौभाग्य कराय सर्व सम्पत्ति वृद्धि कराय नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । (नैवेद्य चढाना)
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