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________________ 538 તપાગચ્છાધિષ્ઠાયક पूर्व पुन्य उदय थकी, सिद्धि रिद्धि भंडारो रे । दर्शन गुरु दर्शन दियो, चन्द्रानन आधारो रे ॥ कल्पतरु ॥ मंत्र : ॐ ह्रीं श्री माणिभद्राय सर्व मंगल कराय सर्व व्याधि दुष्ट ग्रहोपसर्ग हरणाय, महाभीति विनाशाय जलेन प्रक्षालयामि स्वाहा (जल चढाना) चंदन पूजा दूसरी ढाल दोहा सरस सुगंधी- चंदने, केसर केरी सुवास । माणिकभद्र पूजा करूं, मन आणी उल्लास ॥ ढाल राग - मन मोहनजी हेमविमलसूरि आविया, मनमोहनजी । नगर उज्जैन मझार, मनडे वसिया रे, मनमोहनजी ॥ काउसग्ग ध्याने देखिया, मनमोहनजी । धन्य तपस्वीराज, मनडे वसिया रे, मनमोहनजी ॥ . (२) ज्ञान ध्यान क्षमा आगरु, मनमोहनजी । . स्वाध्याये लयलीन, मनडे वसिया रे मनमोहनजी ॥ माणकशाह शंका हती, मनमोहनजी । उत्तर गुरु समाधान, मनडे वसिया रे मनमोहनजी ॥ (४) श्रद्धा अंतर उपनी मनमोहनजी । व्रती बन्या गुणवान मनडे वसिया रे मनमोहनजी ।। गुरुमुख वाणी सामले मनमोहनजी । धर्म ध्यान लयलीन, मनडे वसिया रे मन मोहनजी ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005141
Book TitleYakshraj Shree Manibhadradev
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year1997
Total Pages860
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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