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________________ યક્ષરાજશ્રી માણિભદ્રદેવ 537 प्रत्यक्ष-प्रभावी श्री माणिभद्रवीर अष्टप्रकारा पूजा रचयिता पू .आ. श्री चन्द्राननसागरसूरि जलपूजा दोहा जय कारक जयवंत है, महि मंडल के देव । व्यंतर नरनारी सभी, तुज पद करते सेव ॥१॥ इच्छा पूरण तु घणी, कल्पतरु सम वीर । जग जंजाली जीवने, ले जाय जल तीर ॥२॥ वरदायक वसुधा परी, समय सुधा आधार । व्यंतर भूत प्रेतादि भगे, प्रसरे प्रेम उद्धार ॥३॥ नगर उज्जैन बिराजिया, आगलोड आवास । मगरवाडे प्रमावसु, तीनों लोक प्रवास ॥४॥ जलचन्दन अरु पुष्पसु, धूप दीप मनोहार । अक्षत-नैवेद्य फलतणी, पूजा अष्ट प्रकार ॥५॥ जलपूजा ढाल पहेली राग - प्रभु तुज शासन अति भलुं कल्पतरु- चिंतामणि, इच्छा पूरणहारा रे । मणिभद्र सेवा करी, संपत्तिने वरनारा रे ॥ कल्पतरु ॥ अधिष्ठायक जिन देवना, समकितधारी देवा रे ।। आभ्यन्तर गुण ऊपजे, पावो अमीरस मेवा रे ॥ कल्पतरु ॥ (२) पंनरवी सदी में जनमिया, नगर उज्जैनी मांही रे ॥ माणकशाहना नामसुं, ख्याति जगमें पाही रे ॥ कल्पतरु ॥ धारानगरी परणिया, रतिप्रिया भरतार रे । वंश ओसवाल उजागरु, हीरारा व्यापारी रे ॥ कल्पतरु ॥ धर्मध्यान जिन पूजना, तप जप ध्यान योगो रे । माता विनय घणी नम्रता, सुर पेरे मोगे मोगो रे ॥ कल्पतरु ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005141
Book TitleYakshraj Shree Manibhadradev
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year1997
Total Pages860
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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