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યક્ષરાજશ્રી માણિભદ્રદેવ
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मगरवाडा मणिभद्र वीर चालीसा
रचयिता प.पू. गच्छाधिपति आ. म. श्री दर्शनसागरसूरीश्वरजी महाराज सा., पू. आ. श्री. नित्योदयसागरसूरीश्वरजी म. सा. के शिष्यरत्न जाप-ध्याननिष्ठ प्रवचनकार
__ पू. आ. श्री चंद्राननसागरसूरिजी म. सा.. श्री मणिभद्रवीर मगरवाडा तीर्थ परिचय
चालीसा
दोहा मंगलमय मणिभद्रजी, मंगल तीर्थ महान् । प्रत्यक्ष दर्शन कीजिये, मगरवाडा शुभस्थान ॥१॥
पंचम आरे प्रगटी जयोति । झलहल-झलहलती इकलौति ॥१॥ नगर उज्जैन जन्म है पाया । माणकशाह नाम दिपाया ॥२॥ जिनप्रिया जननी हुलराया । धारानगरी लगन कराया ॥३॥ रतिप्रिया पत्नी मितभाषी । प्रभुपूजन दर्शन अभिलाषी
॥४॥ गुरुवाणी - आतम अभ्यासी । जाप-ध्यान से हो अविनाशी ॥५॥ शत्रुजय गिरि महिमा सुनाई । गुरुगम से शुद्धभाव जगाई ॥६॥ उलटभाव सिद्धाचल मेटं । अंतर अरि दर्शन करी मेट्र |७|| इसी आश से चले दर्शको । अनहद पाया आप हर्ष को ॥८॥ मगरवाडा जंगल में आए । चोरों ने है घात सजाए ॥९॥ कर प्रहार तन टुकडे काने । शाह भाव अंतर शुभ लीने ॥१०॥ शुभ परिणामे मृत्यु पाये । व्यन्तरेन्द्र छ8 कहलाये
॥११॥ मिथ्यामति भैरव मडकाया । आ कर के उत्पात मचाया ॥१२॥ शांतिसोमसूरि दर्शन दीना । सतरे सौ में स्थापन कीना ॥१३॥ मगरवाडा प्रत्यक्ष है आये । मिथ्या भैरव दूर भगावे ॥१४॥ तपागच्छ का बिरुद धराया । जिनशासन का गौरव गाया। ॥१५॥ नगर उज्जैन शिर पूजीजे । मनहर मालव देश कहीजे ॥१६॥ आगलोड में धड थापी जे । गुर्जरभूमि शान कहिजे ॥१७॥ मगरवाडा में पिन्डी पूजा ।ऐसा देव नहीं कहीं दूजा ॥१८॥
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