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________________ 372 તપાગચ્છાધિષ્ઠાયક जाप ध्यानसु झट आ जावे । भक्त भावना इच्छित पावे ॥१९॥ मणिभद्र है वीर प्रभावी । रोग शोक मेटो नित ध्यावी ॥२०॥ श्रद्धा पर्वक फेरो माला । जिनवाणी का पी लो प्याला ॥२१॥ दुनिया में जिसका नहीं कोई । उसका साथी वीर ज होई ॥२२॥ नाभिकमल आवाज उठाई। सच्चे दिल से अरज सुनाई ॥२३॥ जो नर देश विदेश जाता । उन के दिल में मिलती शाता ॥२४॥ लक्ष्मी की लीला लहलाता । उसका रक्षक वीर विधाता ॥२५॥ जहां जाता वहां सुख ही पाता । हरदम मणिभद्र गुण गाता ॥२६॥ भूत प्रेत व्यंतर सब मागे । धर्म ध्यान में सन्मति जागे ॥२७॥ पुत्र सम्बन्धी प्रीति पावे । सेवा भाव सदा उपजावे ॥२८॥ चतुर्विघ श्रीसंघ विख्याता । तपागच्छ का बिरुद धराता ॥२९॥ जिन शासन के हो उजियारा । शासन रक्षक देव हमारा ॥३०॥ दरिद्र दानवता मिट जावे । सुख सौभाग्यता नाम कमावे ॥३१॥ वंध्या पुत्रवती बन जावे । सखियां है हालरियुं गावे ॥३२॥ मणिभद्र महा शक्तिशाली । जाय न इनका दर्शन खाली ॥३३॥ भेटो भाव थकी नरनारी । विपदायें मिट जावे सारी ॥३४॥ प्रातः शाम चालीसा गावो । इह भव-परभव संपत पावो ॥३५॥ मणिभद्र गज की असवारी । सुबह शाम समरो नरनारी ॥३६॥ देव अनुपम समकितधारी । व्यंतर इन्द्र जाऊँ बलिहारी ॥३७॥ मगरवाडा में हरदम रहता । भक्तों को सन्देश सुनाता 1॥३८॥ मणिभद्र सबका रखवाला । अवधिज्ञानी आप निराला ॥३९॥ जो कोई समरे वीर दयाला । सब का काम बनाने वाला . ॥४०॥ (१) दो हजार एकावने, चोमासा गुरु साथ । प्रथम वर्षी दादागुरु, हृदय बसो हे नाथ ? (२) दर्शनसागर गुरुकृपा, नगर खुडाला माय । नित्योदयसागर तणो, चन्द्रानन नित गाय ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005141
Book TitleYakshraj Shree Manibhadradev
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year1997
Total Pages860
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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