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________________ ૧૨૮ महाभारत पर दिये गए ज़ाहिर प्रवचनों का उन्होंने स्वयं आलेखन भी किया है तथा अपने गुरुदेव एवं प्रगुरुदेव के प्रवचनों का सुंदर शैली में अवतरण भी किया है। वे कुशल भावानुवादक हैं- 'शांत सुधारस', 'श्राद्धविधि', 'गुणस्थानक क्रमारोह', 'प्रथम कर्मग्रन्थ', 'जीव विचार', 'नवतत्त्व, दंडक', 'तीन भाष्य' आदि प्राचीन ग्रंथों का उन्होंने सरस भावानुवाद एवं विवेचन भी किया है। वे प्रभावक कथा-आलेखक भी हैं - 'कर्मन् री गत न्यारी' ( महाबल - मलयासुंदरी चरित्र) 'आग और पानी' (समरादित्यचरित्र), कर्म को नहीं शर्म' (भीमसेनचरित्र) 'तब आंसु भी मोती बन जाते है' (सागरदत्तचरित्र) 'कर्म नचाए नाच' (तरंगवती चरित्र) जैसे अनेक चरित्रग्रंथों का उपन्यास शैली में आलेखन भी किया है। वे प्रसिद्ध चिंतक भी हैं। 'प्रवचनमोती', 'प्रवचनरत्न', 'चिंतनमोती', 'प्रवचन के बिखरे फूल', 'अमृत की बूंदे', 'युवा 'चेतना' जैसे प्रकाशनों में उनके हृदयस्पर्शी चिंतन भी प्रस्तुत हुए है। वे कुशल प्रवचनकार भी है 'श्रावक कर्तव्य', 'नवपद प्रवचन', शोध' में उनके प्रवचनों का सुंदर ये प्रसिद्ध कहानीकार भी हैं प्रिय कहानियाँ', 'मनोहर कहानियाँ', 'ऐतिहासिक कहानियाँ', 'मधुर कहानियाँ', 'प्रेरक कहानियाँ' और 'सरस कहानियाँ' आदि में उन्होंने अत्यंत ही सुंदर हृदयस्पर्शी कहानियों का आलेखन किया है। ५. રત્નત્રયવિજયા સંદર્ભસાહિત્યમાં ઘણી જ દિલચસ્પી જણાય छे. भरुघर દેશમાં આવેલ જાલોર જિલ્લામાં માલવાડા ગામ, જે નગરમાં આજ સુધીમાં પચાસથી વધારે દીક્ષાઓ થઈ छे. આ પવિત્રભૂમિ માલવાડાના વતની પ. પૂ. આ. શ્રી રત્નશેખરસૂરિજી મહારાજના શિષ્યરત્ન પૂ. આ.શ્રી રત્નાકરસૂરિજી મહારાજન શિષ્ય પૂ. મુનિશ્રી રત્નત્રયવિજયજી મહારાજશ્રીને જ્ઞાનભંડારોને સમૃદ્ધ કરવામાં અને શ્રુતસાહિત્યના પ્રચાર-પ્રસારમાં ભારે ર લાગ્યો છે. માલવાડાના વતની, સંસારી નામ ધનપાલભાઈ સંસારી પિતા ઉત્તમચંદજી અને સંસારી માતા રંગુબહેન. સં ૨૦૩૭ના મહાસુદ ૬ના દીક્ષા લીધી. સંસ્કૃત-પ્રાકૃ હસ્તપ્રતોની જાળવણી તેમજ અવનવાં પ્રકાશનો પ્રગટ કરવાર્ન તેમની દિલચસ્પી ખરેખર દાદ માગી લે છે. તેમનાં પ્રકાશનોમ 'रत्नसंयय' भाग - १-२-३-४-५ तथा 'सागरभां भी वीरडी' (प्राचीन सभ्य), पार्श्वनाथयस्त्रि' (अघमी) म ‘વિવિધ તીર્થકલ્પ’નું ગુજરાતી ભાષાંતર તથા ‘વિવિધ વિષય વિચારમાળા' ભા. ૧થી ૯ ભારે લોકાદર પામ્યાં છે. નવું ન ચાલુ वे कुशल संपादक भी है-'युवाचेतना विशेषांक', 'जीवन संशोधन-संपादननुं तेमनुं कार्य वावु ४ छे. श्यां भ्यां धार्मिः निर्माण' विशेषांक, 'आहार विज्ञान' विशेषांक, 'श्रावकाचार' विशेषांक, 'सन्नारी' विशेषांक, 'राजस्थान तीर्थ विशेषांक जैसे अनेक विशेषांकों का सफल संपादन भी किया है। પાઠશાળાઓ, ગુરુકુલ વ. ચાલતાં હોય ત્યાં ખાસ પ્રભાવના યુનિફોર્મ વ. અર્પણ કરી બાળકોનો ઉત્સાહ વધારે છે. જે સમાજની નવી પેઢીને ધર્મમાર્ગે વાળવા પૂજ્યશ્રીના યોજનાબ કાર્યક્રમો અવિરતપણે ચાલુ જ હોય છે. પૂજ્યશ્રીની ચીવટ અ ધગશ ખરેખર અનુમોદનીય છે. પૂજ્યશ્રીની આત્મિક ચેતન ગજબની છે. 'सफलता की सीढ़ियाँ', 'प्रवचन- धारा', 'आनंद की संकलन है। - 'जैन शासन के ज्योतिर्धर', 'महान ज्योतिर्धर', 'तेजस्वी सितारे', 'गौतमस्वामी जंबूस्वामी आदि में उन्हों ने जैन शासन के महान प्रभावक पुरुषों के जीवनचरित्रों का सुंदर आलेखन भी किया है। Jain Education International - उनके उपदेश से अनेक संघों में अनेकविध तपश्चर्याएं. अनेकविध भाव यात्राएँ, तप-जप आदि अनुष्ठान, उपधान, जीवित महोत्सव आदि संपन्न हुए हैं। उनके द्वारा आलेखित साहित्य भारत भर के हिन्दी भाषी क्षेत्रों में खूब चाव से पढ़ा जाता है। सन्मार्ग की राह बतानेवाला उनका साहित्य अनेकों के સ્વપ્ન શિલ્પીઓ लिए सफल मार्गदर्शक बना है। उनका साहित्य नूतन प्रवचनकारों के लिए खूब उपयोगी बना है। पंन्यास पदारूढ़ होने के बाद उनके वरद हस्तों से जिन शासन की सुंदर प्रभावनाएँ हो रही सौजन्य : दिव्य संदेश प्रकाशन मंडल મુનિશ્રી રત્નત્રયવિજયજી મ.સા. મુનિશ્રી મહારાજશ્રીને For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005122
Book TitleBahumukhi Pratibhaono Kirti Kalash Swapn Shilpio
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year2010
Total Pages820
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size40 MB
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