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________________ ઝળહળતાં નક્ષત્રો ૩૯૫ (४४) मन, आत्मा, इन्द्रिय अविकारिता : एक तरफ (५०) विविधत्रिक : नमो+अरिहं+ ताणं वगेरे शब्दो मन, बीजी तरफ इन्द्रिय छे अने वच्चोवच्च आत्मा छे. हकीकतमां अनेक प्रकारी त्रिकनो सुमेळ, प्रदक्षिणात्रिकथी देहलक्षी मन संसार छे, आत्मलक्षी मन असंसार छे. माटे लई चैत्यवंदननी दशेयत्रिक अने हेतु-स्वरूप, अनुबंध के सर्वप्रथम अहंकारी मनने नमः कराववा नमो छे, तेथी द्रह-नदी ने सागर, नाद, बिंदुने ताल, औदयिक, अरिहं द्वारा आत्मशुद्धि थाय छे. पछी अशुचि भरेल इन्द्रिय क्षायोपशमिक अने क्षायिक, गति, प्रगति अने मुक्ति प्रथम पण पवित्र छे. पदमां छे. (४५) जिनवचन, जिनबिंब, जिनागमसेवा : "नमो" (५१) आदि-मध्य-अंत्य-मंगल : प्रथम पदमां ज नमो भगवाननी आज्ञा होवाथी जिनवचननी सेवा छे. अरिहं शब्द __ श्रेष्ठ मंगल छे, अरिहंत प्रभु श्रेष्ठतर अने सिद्ध भगवंत अंत्य द्वारा जिनबिंब जिनप्रतिमा के जिनालयने भजवानुं छे अने। मंगल छे. नमो पछी अरिहं अने पछी ताणं तेज तो छद्मस्थ विषम-काळे गृहस्थोने तारक जेम जिनविम्ब तेम अणगारी केवली अने सिद्धनी जीवनलीला समजवा एक संदेश छे. माटे जिनागम छे,जे माटे स्वाध्यायलीन बनवा ताणं शब्द छे. नमस्कार महामंत्रनी साधना पण ज्ञानयोगी आचार्य (४६) शीतलता-प्रकाशकता-शुद्धता : चंद्र जेवी पुंगव हरिभद्रसूरीश्वरजी म.सा.नी दृष्टिए पांच तबक्कामांथी शीतळता नमो शब्दना उच्चार मात्रथी अनुभवाय छे, तेमांय वैरीने पण थतो नमस्कार तो वेरझेरने ज नमावी दे छे. प्रवाहित थती सफळ बने छे, ते क्रम छे (१) नवकार अरिहं बोलता साचो क्षमानो मार्ग मळे छे, धर्म मार्गना । प्रणिधान (२) प्रवृत्ति (३) विघ्नजय (४) सिद्धि (५) अजवाळारूप तीर्थंकर प्रभु छे, अने ताणं-प्रभुनी प्रभुतानो वि विनियोग ते माटे तत्त्वप्रेमीओए योगग्रंथो जाणवा-समजवा. शुद्ध स्पर्श. धर्म पुरुषार्थना सुंदर पंथथी मोक्षलक्षी पुरुषार्थ (४७) कारण-कार्य-सिद्धि : विनयगुण ते तो साधवा (१) यम (२) नियम (३) आसन (४) धर्मीजनने विघ्नहारी तत्त्व छ, जे माटे नमो पद कारण बनी प्राणायाम (५) प्रत्याहार (६) धारणा (७) ध्यान अने पडखे रही कार्यसिद्धिमां सहायक बने छे अने प्रत्येक (८) समाधि एम आठ प्रगति पगथीया छे.जेमां धैर्य-स्थैर्य कार्य माटे अरिहं स्वयं सहायक बनता होवाथी तेमने अने गंभीरता-धीरताथी साधना करनारने महामंत्र नवकार निश्चयनय कार्य ज माने छे, ज्यारे ताणं-संपूर्ण गुण चमत्काररूपे महाज्ञान कैवल्यनी भेट सहजमां धरे छे. विकासथी सिद्धपद. हालता चालता नवकार गणवामां ईर्यासमिति जाय (४८) प्रायश्चित्त-ध्यान-समाधि : पापो ज्यारे डंखवा अने आराधनाने बदले आशातना थाय. तेम फक्त "नमो लागे त्यारे पापभीरू आत्मा पोताना अपराधने देव अने गुरु अरिहंताणं"नो जाप पण स्थिर मनथी स्थिर स्थाने करवामां पासे आलोचवा नमो वदी रजू करे छे, पापोनो पक्षाल थतां लाभ छे. प्रथम पदमां ७ अक्षरोनी आराधना सातेय भयथी अरिहंनं ध्यान निर्दभ बने छे अने प्रभु भक्तिनी लयलीनता मक्त करे छे. द्वितीय पदना पांच अक्षरो पंचामतसमा ते ज ताणं होवाथी भक्त भगवान बने छे. जाणवा. कारण के ते द्वारा पंचाचारनुं आत्यंतिक फळ (४९) मित्र-माता-पिता : मैत्री भावनो धोध नमोनो सिद्धगति साबित थाय छे. बे पद मळी सुदेवनी साधना गूढार्थ छे. योग्यने नमस्कार तो ठीक अयोग्य साथे पण छे. ७+५= १२ अक्षर मळी अरिहंत प्रभुना १२ गुणोनी सद्व्यवहार माटे व्यावहारिक नमन जरूरी छे. नमो द्वारा आप अनुमोदना करे छे अने ७-५-२ थाय छे ते नवकारना भला तो जग भला बने, पछीज करूणामाता अरिहंतनी कृपा प्रथमना बे पदनं गौरव वधारे छे. तेज बे पाछा प्रथम पदी थाय अने सिद्ध भगवंतरूपी पितानुं मिलन थाय. सात अक्षर साथे जोडाई संपूर्ण नवकारना ९ पदोनी साथे Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005120
Book TitleJinshasan na Zalhlta Nakshatro Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year2011
Total Pages720
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size35 MB
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