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જિન શાસનના आज्ञास्वीकाररूपी धर्माचरणनी साथे चारित्रगुण विकसाववा कर्मस्थितिनुं कारण छे, पण द्रव्य नमनथी सहजमल माटे "नमो अरिहंताणं' पद छे.
धोवातां कर्मस्थिति अंतःकोटाकोटिथी पण ओछी थाय छे. (३३) शं, शेने, शाने ? भवाटवीमां भटकता जीवोने तेनो प्रभाव पथरातां अरिहं वदतां पाप नाश अने ज्यारे भवनो थाक लागे त्यारे ज भान थाय के हवे शं अरिहंतशरणरूपी ताणंथी दु:खक्षय थई जाय छे. कवू ? उपाय छे नमो पण कोने पण तो अरिहं ने शा माटे (३९) शब्द-अर्थ-तत्त्व : तत्त्वज्ञान ते ज सम्यक्ज्ञान, तो विषय-कषाय, सुख-दुःख, उतार-चढाव, संकल्प- पण ते सहजमां नथी थतुं. ते माटे प्रथम शब्द, भाषा के विकल्प, राग-द्वेष वगेरे वगेरेना द्वंदोथी ताणं मेळववा. सूत्रनुं ज्ञान, पछी अर्थ, भावार्थ के शब्दार्थनं ज्ञान अने
तत्पश्चात तात्त्विक बोध थाय छे. नमो ते शब्द छे, अरिहं . (३४) आत्मा वडे, आत्माने, आत्माना हितार्थे : हे जीव ! अंतरात्मानी साक्षी साथे आत्मा वडे नमो बोलीश
ने नमो बोलतां शब्दार्थ छे अने ताणं ते ऐदंपर्यार्थ छे. तो अरिहंने नमस्कार साचो थशे ते हकीकतमां पोताना
(४०) श्रद्धेय, ध्येय, शरण्य : श्रद्धा विना नमस्कार परमात्मारूपी आत्माने ज नमन थशे अने ताणं वडे प्रभकपा केवा? पण श्रद्धानुं साधन ते ज ध्येय बने छे. अरिहं जेवी पात्र आत्माना ज निस्तार माटे थशे.
ध्येयता वळी शेमां? अने एकवार साचो परिचय वीतरागी
भगवाननो थई गयो पछी तेना जेवा शरणदाता कोण? (३५) शास्त्रानुसारी, आत्मानुसारी अने
आ बधाय प्रश्नोनो जवाब एकमात्र नमो अरिहंताणंमां परमात्मानुसारी : "नमो" एटले स्वना विचारो, बुद्धि
छूपायो छे. कल्पनाओ, राग-द्वेषना विकारो बधायने नमाववानी
(४१) उदक, पयः अने अमृतकल्प : विषयोनी अने प्रक्रिया, जेथी ते द्वारा शास्त्र कथित विनय गुण सेवाय छे.
वासनानी तृषा नवकाराराधक शांत बनावे छे, कारण के अरिहंतनुं स्मरण ते ज आत्मस्मरण छे अने ताणं द्वारा सर्वस्व
"नमो" शब्दमां जळ जेवी शीतळता छे. अरिहं समर्पण ते परमात्मा बनवानो राजमार्ग छे.
शब्दशक्ति दग्ध जेवी क्षधाशामक छे जेथी कषायभखनं (३६) दासत्व, जीवत्व, आत्मत्व : सेवक-पूजकपणुं दुःख जाय छे अने तरस-भूख मटी जतां ताणं रूपी उगे त्यारे "नमो'" शब्द नीकळे, माटे नमो ते लघुतादर्शक जिनाज्ञाथी आत्मानी तुष्टिपुष्टि अमृतमय बने छे. छे, पण अरिहं बोलवामात्रथी सवी जीव करूं शासनरसीनी
(४२) भाषा, श्वास अने मनवर्गणा शद्धि : "नमो" भावनावाळा अरिहंतनी भक्ति थवाथी जीवमात्र प्रति स्नेह जेवी हित-प्रीत अने मितकारी भाषा नथी. जेथी भलभलाने छलकाय छे अने ताणंनो अर्थ सर्व विरति थवाथी भलाईना भावो जागी जाय छे. श्रेष्ठ भाषा नमन वंदन तेम आत्मदशा विकास छे..
श्वासोश्वासमां अरिहंतनो जाप तेज जीवननी सार्थकता छे अने (३७) छ प्रकारी अभ्यंतर तपसेवना : प्रथमना बे मनोभावनुं पण अर्पण-समर्पण थतां ताणं द्वारा मनवर्गणाना अभ्यंतर तपनुं नाम प्रायश्चित्त अने विनय छे, ते माटे साधन को शुद्ध बनी जाय छे. छे "नमो' पद. जिन वचनसेवारूपी वैयावच्च अने जिनागम (४३) पिंडस्थ, पदस्थ, रूपस्थ : केवळज्ञान रहित स्वाध्याय साथे अरिहंनो भावार्थ जोडायेलो छे. "ताणं' अवस्था पण तीर्थंकर प्रभुनी होवाथी 'नमो' द्वारा वंदनीय पद चारित्रिक गुणवाची होवाथी ध्यान अने काउसग्गनो छे. अरिहं शब्द भगवाननो केवलातिशय ने ऋद्धि-समृद्धि संकेत करे छे.
निहाळवा माटे छे. ज्यारे ताणंनो सदुपयोग अघाती (३८) सहजमळ, पाप अने दुःखनाशक :
कर्मनाश पछीनी मुक्तावस्थाना निरंजन-निराकार रूपरहित अनादिकाळथी अविरत बंध थतो सहजमळ लांबी लांबी रूपस्य दशन माट छ.
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