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ઝળહળતાં નક્ષત્રો
थाय ? आलोचना शुद्धने अरिहंना ध्याने बधायना गुणोनुं सचोट दर्शन थाय छे. ज्यारे ताणंनो प्रयोग प्रभुनी आज्ञा स्वीकार माटे थाय छे, जे साची भावपूजा पण छे.
(२१) राग-द्वेष - मोहनाशक स्वनो अहं जे दुष्कृतगहने रोकनार छे ते नमः मात्रथी नाश पामता स्वपक्षपात रागनो नाग नाशे छे, अरिहं बोलतां ज अन्यनी अनुमोदना प्रतिकारी द्वेषभाव दबाय छे ने गुणानुराग खीले छे, तेम ताणं कहेता संसार तरफी मोहने अज्ञान पण विलाय छे.
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(२२) ध्याता - ध्येय - ध्यानशुद्धि : नमो बोलनार ध्यातानी भावशुद्धिनुं कारण नमस्कार छे. जेथी साचो मार्ग मळतां ध्येयरूपे अरिहं मळे छे अने शुक्लध्यान योगी परमात्मानी ज परमकृपाथी ताणं द्वारा विषय - कषाय विमुख जीव ध्याननी पण शुद्धि अनुभवे छे.
(२३) पायो - मंझिल - मोक्ष : नमो ते तो पापघातनो प्रथम पायो छे. पापकर्मो ज्यारे अंत: कोटाकोटि सागरोपमथी पण अल्प थाय त्यारे प्रथम शब्द नमो होठे आवे, हैयामां अरिहंत वसे अने मोक्षमार्ग कपावा लागे, अंते त्राण पामी जीव मोक्षे पण जाय.
(२४) तत्त्वरुचि -तत्त्वबोध - तत्त्वपरिणति : योगात्माने नमननी रुचि ते श्रद्धा गुण छे, जेनी उत्पत्ति नमो शब्दथी छे. ज्ञान प्रगटतां तत्त्वनो बोध अरिहंत प्रभुनी कृपाथी थाय छे अने ते ज ज्ञान विरतिमां परिणत ताणरूपी आज्ञा स्वीकारथी थाय छे ते ज छे " नमो अरिहंताणं"
(२५) धर्मकाय, कर्मकाय, तत्त्वत्काय : छद्मस्थ अवस्थामा रहेल परमात्माने नवकारना आराधके प्रथम नमो कही नमन करवा, पछी केवळी अवस्थानी कर्मकाय स्थितिना दर्शन अरिहं बोली करवा ने ते ज अरिहंतने सिद्ध बनेल तत्त्वत्कायवाळा ध्यानमां ताणं शब्दथी देखवाना छे.
(२६) मन-वचन - काय योग प्रशस्तता : मानवीनो मान पलटो थतां मन नमो नमो करवा लागे छे अने ते ज नमस्कारथी वाचा अरिहंतना अतिशयोने वर्णववा लागे छे.
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काया द्वारा पंचाग प्रणिपात ते ताणं शब्दार्थ छे. तेम थतां त्रणेय शक्तिओ पांगरे छे.
(२७) वहिर्भाव त्याग, अंतर्मुखी भाव, परमात्मदशा : संसारनी वासनाना त्यागे ज भाव नमो उद्भवे अने अरिहंतना ध्याने आत्मजागरण थतां सम्यकदृष्टि खीले छे. ताणं एटले सर्वस्वनुं सर्वस्व परमात्मामां विलीनीकरण जे सर्वोच्चदशानुं वर्चस्व पण छे.
(२८) बोधि- समाधि-सिद्धि : नमे ते सौने गमे, नमोनुं फळ छे बोधिनी प्राप्ति, अने पंचपरमेष्ठि प्रमुख अरिहंनो सम्यक् परिचय ते समाधिदशानुं अवंध्य कारण छे. परमात्मा तेज मारो आत्मा आवी भावदशा ते खरी सिद्धि छे, शब्दोच्चार छे ताणं.
(२९) द्रव्य-गुण-पर्याय : नमो-नम्रता, मित्रता, स्वापराध स्वीकार. सारमां छे मैत्रीभाव विशाळ अने उदारभावथी अरिहं शब्द-प्रमोद भावना अने ताणं करूणा अथवा उपेक्षा भावना, कारण के द्रव्य थकी मैत्री, गुणथी प्रमोद अने पर्यायना दुःख - पापथी करुणा - माध्यस्थभाव जन्मे छे.
(३०) इडा-पिंगला- सुषुम्ना वारंवार 'नमो अरिहंताणं'ना प्रगट जापथी रजोदोषने तमोदोष हणाय छे, पछी वर्ण पण शांत थतां, आत्मानो अनाहत नाद संभळाय छे अंते आत्मदर्शन थाय छे. नमोनी साथे इडाने, अरिहंनी साथै पिंगलाने स्तंभितकारी ताणं द्वारा कैवल्यकारी सुषुम्नाने जगाडवानी छे.
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(३१) निर्विचार-निर्विकार-निराकार संकल्प विकल्पना द्वंद सुसाधुथी सिद्धना नमन मात्रथी जाय माटे नमो कहेवानुं छे. अविकारी वीतरागी अरिहंत प्रभुनी भक्तिनुं फळ छे निर्विकारदशा अने अंते ताणं मात्रथी सिद्ध थल स्वात्माने निरंजन निराकार कल्पवानो छे.
(३२) देव-गुरु-धर्म : देवाधिदेव परमात्माने नमो कही दर्शन-पूजन करवा, अरिहं बोली परमगुरु पासेथी ज्ञान अने मार्गदर्शन मेळववुं तेम ताणं कहीने शरण अने
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