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(८) पापक्षय, दुःखक्षय, कर्मक्षय : दुःखनुं कारण छे पाप. नमो शब्दभावथी त्यारे ज बोलाय ज्यारे दुष्कृतो करडवा लागे. तेथी ज नमोना स्मरणथी पाप नाश, अरिहं थकी संसारना समस्त दुःखोना नाश अने ताणं शब्दथी त्राण पामी गयेल सिद्धो जेवो कर्मक्षय इंगित थाय छे.
(९) दुष्कृतगर्हा, सुकृत अनुमोदना, चार शरणा : मोक्षलक्षी तथा भव्यत्वने पकवनार त्रणेय तत्त्वोमां पापोनो पश्चाताप नमो करावे छे. सर्वगुणो प्रति, प्रमोदभावना द्वारा सुकृतोनी अनुमोदना अरिहंतपद करावे छे अने ताणं ते अरिहंत, सिद्ध, साधु अने धर्मना चार शरणरूप छे.
(१०) मंगल - उत्तम - शरण: संपूर्ण नवकारनो प्रथम शब्द नमो छे, माटे नमो एज मंगल छे. अरिहं जेवी उत्तम हस्ती जगमां कोई नथी, अने संपूर्ण नवकार पण शरणरूप छे एम ताणं कहे छे.
(११) ज्ञान - दर्शन - चारित्र : ज्यां अज्ञान अने अहंकार त्यां नमो नथी. तेथी नमो ज्ञान विकासनो संकेत छे. तेज ज्ञान अरिहंत प्रभुनी आज्ञामां श्रद्धा वधारनार होवाथी अरिहं पद दर्शनकारी छे अने ज्ञानना फळरूप विरतिनुं कारण ताणं होवाथी चारित्रनी आराधना छे.
( १२ ) इच्छा - शास्त्र - सामर्थ्य योग : पोताना दोषोना दर्शननी इच्छा विना नमो केम बोलाय ? माटे नमो इच्छा योग छे, सकलशास्त्रना शास्त्री समा अरिहंत ते अरिहं पद जगावे छे माटे शास्त्रयोग छे अने अरिहंत - सिद्ध जेवा समर्थ अन्य कोई न होवाथी ताणं सामर्थ्य योग छे.
(१३) एकता-पूर्णता-शून्यता : नमो ते ज्ञानगुणथी निष्पन्न होवाथी आत्मा परमात्मानी एकतादर्शक रचना छे, अरिहं पद भक्ति भरपूर होवाथी पूर्णताने प्रमाणरूप छे अने ताणं शब्द वैराग्य भरेल विद्वतानुं कारण बनवाथी संसार शून्यतानुं चिह्न बने छे.
(१४) सद्विचार, विवेक, वर्तन : नमो भावना सुंदर विचार विना केम जागे ? माटे नमो ते सुविचार छे. अरिहं ते विचारना फळरूप अरिहंत भक्तिरूपी विवेक होवाथी
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विनय छे अने ताणं शब्द द्वारा सारा आचरणनो संदेश संप्राप्त थाय छे.
(१५) योगावंचक, क्रियावंचक, फलावंचक : नमो रूपी प्रणमन साधे प्रारंभ थयेलो योग निष्फळ न जतो होवाथी फळ प्राप्ति थाय छे, माटे फलावंचक सुधी पहोंचवा नमो योगावंचक छे, अरिहंना प्रणिधान साथेनी क्रिया सफळ होवाथी क्रियावंचक छे अने ताणं ते प्रमाणे फलावंचक छे.
(१६) श्रवण-चिंतन - भावना : वाचनादाता पासेथी ज्यारे नवकारना रहस्यो सुणवा इच्छा जागे त्यारे सर्व प्रथम जे वंदन करवाना छे, ते ज छे 'नमो'. ते पछी अरिहंत प्रभु विशे कईक परिचय थतां मनमां शुभचिंतन थाय छे अने ताणंनो शब्दार्थ छे, प्रभु मिलनथी उद्भवती भावना.
( १७ ) कामधेनू, कल्पतरू, चिंतामणि : "नमो अरिहंताणं" ना भावमनथी ज तो अहं जता ईन्द्रभूतिने अ मळ्या अने गुरु गौतमने अरिहंत महावीर थकी ज लब्धिओ प्रगटी, गौ-कामधेनु, त-कल्पतरू अने मचिंतामणि. ते त्रणेय शीघ्रफळदायी तेम प्रथम पद पण दाता छे.
(१८) शांति, तुष्टि अने पुष्टि : मानादि कषायोनो दाह शांत थाय छे " नमो" ना भावोच्चारथी, तेम विषयविजेता बनाय छे 'अरिहं' बोलवाथी, तेथी तृष्णा शांत थतां आत्मिक तुष्टि थाय छे अने छेल्ले अरिहंतशरणरूपी ‘ताणं' थी पुष्टि थतां कर्मना कर्दमनुं शोषण शरणगमनथी थाय छे.
(१९) उपशम, विवेक, संवर : स्वापराधने समजी जनार ज उपशमभावथी नमस्कारने भजवा नमो बोली शके छे. नमोनो ज प्रभाव छे के विवेक जागृत बछे अरिहंत गमवा लागे छे पछी तेमना ज चरण-शरणथी जीवात्मा संवर तत्त्व प्राप्त करे छे ते प्रताप छे ताणंनो.
(२०) स्वदोषदर्शन, परगुणदर्शन, शरणागति : पोताना पापो डंख्या वगर पापरहित परमेष्ठिने नमो कही नमन केम
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