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________________ ઝળહળતાં નક્ષત્રો. ૩૯૧ नमो अरिहंताणंनी समन्वय साधी शकाय छे. तेमांय नमो शब्द मात्रनी ज प्रचंड शक्तिनो परिचय मळशे. ज्ञान पंचमी (२) उप्पनेइ वा, विगमेइ वा, धुवेइ वा :- नमो (सप्ताक्षरी मंत्रना ५१ रहस्यो) बोली भाव नमन करतां ज सम्यकज्ञाननी उत्पत्ति, अरिहं शब्दथी राग-द्वेष-मोहाज्ञाननो नाश अने ताणं कहेवा __ कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्राचार्यजी जेवा समर्थ शासन मात्रथी अघाति कर्मोथी पण त्राण पामेल सिद्धना क्षायिक प्रभावक उपरांत ज्ञानयोगी हरिभद्रसूरिजी रचित नियुक्तिओ, गुणो ध्रुवता, स्थिरता स्मरण पट उपर छवाय छे. तेम भक्तामर स्मरणना रचयिता आचार्य मानतुंगसूरिजी जेवा दिग्गज भक्तियोगी द्वारा रचित "नवकार सार थवण" (३) अहंकार-ममकार-संसारनाश : ज्यां अहंकार त्यां स्तवन वगेरेमा महामंत्र शाश्वता नवकार विषयक जे जे नवकार न रहे. तेम नवकारनो सार नमनसूचक नमो शब्द चिंतनो छे, तेनुं तथा छेल्ला पचास वरसमां थई गयेल श्रेष्ठ सांभळता ज अहंकार विजय, अरिहं बोलतां प्रभु समर्पणथी नवकार अनुप्रेक्षकोना सद्विचारो- दोहन करतां स्वानुभूति ममकार विजय अने ताणं बोलता सर्वस्वनुं विलीनकरण थई साथे जे अभिनव ज्ञान गुरुदेवोनी कृपाथी लाध्यं तेनो जवाथी संसार सळगी जाय छे, मुक्ति खीली जाय छे. आंशिक भाग अत्रे प्रस्तुत करतां हर्ष एटले पण अनुभवाय (४) तप-संयम-अहिंसा : धर्मरूपी उत्कृष्ट मंगलने छे के रज थतो आ नानो लेख पण अनेकोने नवकारनी दर्शावतो नमो शब्द विनयरूपी अभ्यंतर तप, अरिहं द्वारा श्रद्धा विकास करावी, तेना रहस्यो तरफ अंगुलीनिर्देश . संयममूर्ति तीर्थंकर प्रभु- स्मरण तथा ताणं मात्रथी समस्त करशे. जीवराशिने दु:खोथी बचावनार (त्राण आपनार) अहिंसा तीर्थंकर कथित, गणधरगुंफित तथा योगीओ द्वारा गुण विकसित थाय छे. उच्चरित ६८ पवित्रतम वर्णवाला संपूर्ण श्री नवकारना फक्त (५) मंगल-श्रेष्ठ-अभेद : पंच परमेष्ठिने नमन एटले प्रथम अने सप्ताक्षरी पद “नमो अरिहंताणं" उपर ज अत्रेनुं पंचमंगलमूर्तिने वंदन, पूजन, अर्चन तेथी प्रथम शब्द नमो विवेचन सारभूत जाणवू. तत्त्वप्रेमीओ माटे आज प्रस्तुति ते मंगलता सूचक छे, अरिहं-जगत्श्रेष्ठ परमात्माना ज्ञानसार समान छे. कारण के चौद पूर्वनो सार नवकार गुणवैभवनी श्रेष्ठता सूचक छे तथा ताणंनो भावार्थ छे अने तेनोय संक्षेपित सार जे अरिहंत वंदन छे तेमां पण आत्मा-परमात्मानी अभेददशानी अनुभूति. नानी-मोटी, अघरी-सघरी, व्यक्त-अव्यक्त अन गुप्त- (६) बीज-वृक्ष-फळ : नमो ए धर्मनुं मूळ के प्रकाशित केटली विगतो छे ते जाणवा-माणवा जेवी छे, फळदायी वृक्षतुं बीज छे, अरिहं अनेकोना भवताप हरनारं तो चालो तीर्थंकर परमात्माने भाव नमस्कार करी नवकारना शीतलछायारूप अरिहंत प्रभy आर्हत्य वृक्ष तथा ताणंनो रहस्यो अवगाहीये. ऐदंपर्यार्थ छे चरण-शरणथी निष्पन्न थतुं मुक्तिरूपी फळ. ज्ञानना ५१ गुणोनी अनुमोदना करवी जेथी “नमो मूळथी फळ ते प्रथम पद छे. अरिहंताणं' पद मात्रनी एकावन विशेषताओनो स्कूटबोध (७) विनय-विवेक-वैराग्य विरति : नमो एटले ज निम्नांकित लेख रचनाथी सुगम बने तेवी शुभकामना.. विनयनो पर्यायवाची शब्द जे कहे छे नमो मात्रथी जगतना (१) नमो अरिहंताणं : एम बे शब्दोनुं विभाजन करी नाथ अरिहं प्रभुना परिचयनो विवेक जागे छे, ए आगळ नमो+अरिहं+ताणं तेम त्रण शब्दोनी त्रिपदी बनावतां ज वधतां संसार दु:खोना त्राण स्वरूप भागवती दीक्षाना भाव दन्वयी अन्य त्रिपदीओ साथे नमो अरिहंताणंनो साहजिक मा पालोलायी जाने के Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005120
Book TitleJinshasan na Zalhlta Nakshatro Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year2011
Total Pages720
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size35 MB
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