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________________ लेखा ५१३-११। ( 3 ) प्रदत्त जहांगिरीमहातपाविरुद्घारकसकल सुविहितसाधुपरंपरा (4) पुरंदर श्रीविजयदेवसूरीश्वरे विजयिनि सति पट्टव्यवस्थापि- (5) तपेदपादेशाधिराजराणाश्रीजगत्सिंहप्रतिबोषदायक (6) आचार्यश्री ५ श्रीविजयसिंहसूरीश्वराणां पादुका का रिता श्री ३१९ (7) पत्तन वास्तव्य ओसवालज्ञातीय संघवी रता सुत सं० मानसिंह (8) भार्या वा० माणिकदेनान्या पुत्री नागवाई कल्याणबाई सा. उग्रसेन (७) सहितया श्रेयोऽर्थं प्रतिष्ठिता भाहरकश्रीविजयदेवसूरि निर्देशात् महो (10) पाध्यायश्री ५ श्री भानुचन्द्रगणिशिष्य पंडितश्रीविवेकचन्द्र गणिभिरिति मंगलम् | ( ५१५ ) सं० १७१३ वर्षे माघशुक्ल ७ दिने श्रीतपाच्छे सार्वभौम भट्टारक श्रीविजयसेनसूरिपट्टालंकार भट्टारक श्रीविजयदेवसूरीश्वराणां पादुका व्य० रामसिंह चांपसी कारिता । प्रतिष्ठिता च भट्टारक श्रीविजयप्रभसूरीन्द्रनिर्देशात् श्रीदीपसागरगणिनेति || Jain Education International ૩૯૧ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005113
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJinagna Prakashan Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages780
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size12 MB
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