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________________ लेखाङ्कः-३५४ । ( 24 ) ( 23 ) प [ह] हमेकं नरपतिना दत्त (सं) तत् (द् भाटकेन देवश्रीपा[र्श्व]( 25 ) नाथगोष्टि (ष्टि) [कैः प्रतिव]र्षः पै) (26) आचां (चंद्रार्क पंचमीव (व) लि: (27) कार्या (र्यः) [ ॥ शुभं ] भव[तु] || छ || ( ३९४ ) (1 ) ॥ ६० ॥ संवत् १६८१ वर्षे प्रथम चैत्रवदि ५ गुरौ अह श्री राठोड वंशे श्रीसूरसिंघपट्टे श्रीमहाराज श्रीगजसिंहजी (2) विजयिराज्ये मुहणोत्रगोत्रे वृद्ध उसवालज्ञातीय सा० जैसा भार्या जयवंत पुत्र सा० जयराजभार्या मनोरथदे पुत्र सा० सादा सुभा सामल सुरताण प्रमुख परिवार पुण्यार्थे श्रीस्वर्णगिरिगह (ढ) दु २१३ ( 3 ) परिस्थितश्रीमत्कुमरविहारे श्रीमति महावीरचैत्ये सा० जेसा भार्या जयवंत पुत्र सा० जयमलजी वृद्धभार्या सरूपदे पुत्र सा० नहणसी सुंदरदास आसकरण लघुभार्या सोहागदे पुत्र सा० जगमालादि पुत्रपौत्रादिश्रेयसे ( 4 ) सा० जयमलजीनाम्ना श्रीमहावीरविंबं प्रतिष्ठा महोत्सवपूर्वकं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीतपागच्छपक्षे सुविहिताचारकारक शिथिलाचारग (निवा) रक साधुक्रियोद्धारकारक श्री आनंदपद्धरि पट्टप्रभाकर श्रीविजयदान सूरि Jain Education International ૨૮૫ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005113
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJinagna Prakashan Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages780
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size12 MB
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