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________________ लेखाङ्क: - ८५ । ९७ ु प्राग्वाटज्ञातीय उ० श्रीचंडप ठ० श्रीचंडप्रसाद महं० श्री सोमान्वये ठ० श्री आसराजसुत महं० श्रीमल्लदेव महं श्रीवस्तुपालयोरनुज महं० श्री तेजपालेन कारितश्रीलूणसीहवसहिकायां श्री नेमिनाथ (*) देवचैत्यजगत्यां श्रीचंद्रावतीवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० वीरचंद्र भार्या श्रियादेवि पुत्र श्रे० साढदेव श्रे० छाइड श्रे० साढदेव भार्या माऊ पुत्र आसल थे जेलण जयतल जसघर श्रे० छाहडभार्याथिरदेवि पुत्र घांघस श्रे० गोलण जगसीह पाल्हण तथा श्रे० जेलण पुत्र श्रे० समुदर श्रे० जयतल पुत्र देववर सयवर श्रीधर आंवड ॥ (*) जसघर पुत्र आसपाल | तथा श्रे० गोलण पुत्र वीरदेव विजयसीह कुमरसीह रत्नसीह जगसीह पुत्र सोमा तथा आसपाल पुत्र सिरिपालविजयसह पुत्र अरसीह श्रीधर पुत्र अभयसीह तथा थे० गोलणसमुद्धर प्रमुख कुटुंबसमुदायेन श्री शान्तिनाथदेवविवं कारितं प्रतितिं नवांगवृत्तिकार श्री अभयदेवसूरि संतानीयैः श्रीधर्म्मघोषसू रिभिः ॥ ( ८५ ) ६० || स्वस्ति श्रीनृपविक्रमसंवत् १२९३ वर्षे चैत्र वदि ८ शुक्रे अह श्री अर्बुदाचलमहातीर्थे अणहिलपुरवास्तव्य श्रीमावाट ज्ञातीय ठ० श्रीचंडप ट० श्री चं( * ) डमसाद महं० श्री सोमान्वये ठ० श्री आसराजसुत महं० श्रीमल्लदेव महं० श्रीवस्तुपालयोरनुज पहं० श्रीतेजःपालेन कारित श्रीलूणसी हवसहि (*) कायां श्रीनेमिनाथदेवचैत्ये जगत्यां चंद्रावतीवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय महं० कउडि सुत श्रे० साजणेन स्वपितृव्यक सुत भ्रातृ वरदेव | कडुआ | धाम (*) देवें । सीहड । तथा भ्रातृज आसपाल प्रभृति कुटुंब सहितेन श्रीनागेंद्रगच्छे श्रीविजय सेन सूरिप्रतिष्ठितऋषभ 13 Jain Education International ૧૬૯ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005113
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJinagna Prakashan Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages780
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size12 MB
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