SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ प्राचीन जैनलेखसंग्रहे पीमजी पुत्र रविजी पितामह भ्रातृ सं० नाथा पुत्र सूरजी स्वपुत्र उदयवंत प्रमुखपरिवृतेन स्वयंसमुद्धृतसप्राकार श्रीविमलाचलोपीर मूलद्धारसारचतुर्मुखविहारशृंगारश्री आदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीमहावीरदेवाविच्छिन्नपरंपरायात श्रीउद्योतनसूरि श्री - वर्द्धमानसूरि वसतिमार्गप्रकाशक श्रीजिनेश्वरसूरि श्रीजिनचंद्रसूरि नवांगवृत्तिकारक श्रीस्तंभनकपार्श्वप्रकटक श्री अभयदेवसूरि श्रीजिनवल्लभ सूरि युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरिपाद श्रीजिनभद्रसूरिपाद श्री. अकवरप्रतिबोधक तत्प्रदत्तयुगप्रधानपदधारक सकलदेशाष्टाहिकामारिपालक पाण्मासिकाभयदानदायकयुगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरि मंत्रकर्मचंद्र कारित श्री अकवर साहिसमक्षसपादशतलक्षवित्तव्ययरूपनंदिमहोत्सव वि[स्तार] विहितकठिन काश्मीरादिदेशविहारमधुरतरातिशायिस्ववचनचातुरीरंजितानेक हिंदुक तुरुष्काधिपति श्री अकब्बरसाहि श्रीकार श्रीपुरगोलकुंडा गज्जणाममुख देशामारिप्रवर्तावकवर्षावधिजलधिजलजंतु जातघातनिवर्तावक सुरताणनूरदी जहांगीरसाहिप्रदत्तयुगप्रधान विरुदप्रधान श्रीजिनसिंहरि पट्टप्रभाकरसमुपलब्ध श्रीअंबिकावरवोहित्यवंशीय सा०धर्मसी धारलदे नंदन भट्टारकचक्रचक्रवर्तिभट्टारकशिरस्तिलक श्रीजिनराजसूरिभूरिराजैः ॥ श्रीवृहत्खरतरगच्छाधिराजैः || आचार्यश्री जिनसागरसूरि पं० आनंदकीर्ति स्वलघुभ्रातृ वा भद्रसेनादिसत्परिकरैः ॥ ( एपिग्राफिआ इण्डिका-२६२ ) ( १९ ) संवत् १६७५ मिते सुरताणनूरदीजहांगीरसावाई विजयराज्ये साहियादासुरताणपोस [ डू ] प्रवरे राजनगरे सोबई साहियानसुरताणपुर मे वैशाख सित १३ शुक्रे श्रीअहम्मदावादवास्तव्यप्राग्वाटज्ञातीय से० देवराज सा० ( डू ) डी पुत्र से० गोपाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005113
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJinagna Prakashan Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages780
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy