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________________ સ્થવિરાવલી में यह ऐतिहासिक घटना घटी थी जिसे माथुरीवाचना के नाम से पहिचाना जाता है. इस प्रकार मथुरा नगरी जैन धर्म के प्राचीन इतिहास को गौरवन्वित कर रही है. ૫૮ इन सभी ऐतिहासिक मूर्ति एवं अभिलेखों से जैनधर्म में जिन मंदिर, जिनमूर्ति व मूर्तिपूजा चैत्यवासीयों से भी पूर्व में थी ऐसा तथ्य सामने आता है. एवं मूर्तिपूजा का विरोध करने वाले "जैन धर्म में मूर्तिपूजा चैत्यवासियों से प्रारंभ हुई है" ऐसा कहनेवालों को सत्य समझने का बल मिलेगा. क्योंकि जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों की चौकियों पर उट्टंकित शिलालेखों कोलिय, वारण, उद्देहकिय आदि गणों के, तथा पेतिवात्रिका, पुष्यमित्र, कनिषियासिक, अय्याभिष्ट और गवेधुय कुलों के एवं बह्मदासिक, वेछालीय, थानीय, अनेपवाहाल शाखाओं के नाम मिलते हैं, जिसकी पुष्टि श्री नंदीसूत्र व कल्पसूत्र की पट्टावलीयां करती है. हाथ कंगन को आइने की जरुरत नहीं होती. आशा है सत्यान्वेषी मुमुक्षु मूर्तिपूजा के सत्य का स्वीकार करेगा. संदर्भ ग्रंथों की सूची - १. हीस्ट्री ऑफ जैन मोनेचीझम् - एस. वी. देव २. जैन स्तूप एन्ड अधर एन्टीक्विटीझ ऑफ मथुरा - विन्सेन्ट ए. स्मिथ ३. ए लेजन्ड ऑफ जैन स्तूप ऑफ मथुरा जे. वुल्हर ४. मोन्युमेन्टल एन्टीक्विटीझ एन्ड इन्स्क्रीप्शन्स इन द नोर्थ वेस्ट प्रोवीन्स ऐंध - ए. फ्युरर. (संपूर्ण) (ઈતિ પં. શ્રી ભુવનસુંદરવિજયજી ગણી) - *** મહાન ઉપકાર અને પ્રભાવ શ્રી મહાવીર પ્રભુનો આધાર : જૈન પરંપરાનો ઈતિહાસ ભાગ-૧ વીતરાગ સર્વજ્ઞ ભગવાન મહાવીર સ્વામીએ વૈશાખ સુદ ૧૧ ના મહસેન વનમાં ૧૧ ગણધરો બનાવ્યા; અને ત્યાં જ સાધુ, સાધ્વી, શ્રાવક અને શ્રાવિકા - એ ચતુર્વિધ સંઘની સ્થાપના કરી અને ત્યારથી ૩૦ વર્ષ સુધી વિહાર કરી જગત ઉપર મહાન ઉપકાર કર્યો. Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.005025
Book TitleSthaviravali ane Teni Aaspas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunsundarvijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2007
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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