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________________ ૧૫૬ સ્થવિરાવલી આ ઉલ્લેખથી સમજી શકાય છે કે, જૈનસંઘે દ્રવ્ય, ક્ષેત્ર, કાળ અને ભાવનો વિચાર કરી વિ.સં. ૮૪પથી જૈન ગ્રંથભંડારોની સ્થાપના ચાલુ કરી छ. संभव छ , ते समये भोट, चित्तोड, पलभी, इथे२१, सांडेराव, भटेवर, पायs, भोटे, 12, लिनमाल, नागोर, मध्यभिडी, नसोर, મથુરા પૈકીનાં ઘણાં સ્થાનોમાં જૈન ગ્રંથભંડારો બન્યા હશે. સ્થાનકવાસી આચાર્યશ્રી હસ્લિમલજી લિખિત ઈતિહાસની અમૌલિકતા. (संपादकीयः- स्थानकवासी संप्रदाय के आचार्यश्री हस्तीमलजी म.ने जैन धर्म का मौलिक इतिहास लिखा है इस में खण्ड १ और २ में मौलिक जैनधर्म में जिन मूर्ति विषयक मान्यता-दर्शनीयता की और पूजनीयता का बयान जो किया है इसकी असत्यता बताने के लिए पू. मुनिराजश्री भुवनसुंदरविजयजी म. (हाल वि.सं.२०६३ श्रावण में पंन्यासजी म.) ने एक किताब - 'कल्पित इतिहास से सावधान' नामक लिखी है. इसमे से उपयोगी थोड़ा ही भाग यहां साभार उद्धृत) पूज्य श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण आचार्यश्री लिखते हैं कि भगवान श्री महावीर स्वामी के निर्वाण के पश्चात करीब ९८० वर्ष बाद वल्लभीपुर में जिन महापुरुष ने श्रमणों को एकठ्ठा करके आगम वाचना करवायी थी और जैनागमों को तालपत्रों पर लिखवाकर सुरक्षित करवाया एवं हमारे तक पहुंचाया उन महोपकारी श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण. आपने वल्लभीपुर में श्रमण संघ को इकठ्ठा करवाकर आगमिक वाचना करवायी थी और जैनागमों एवं आगमेतर प्राचीन जैन साहित्य को चिर स्थायी बनाकर अपार उपकार किया था. श्रद्धालुओं द्वारा परम्परा से यह मान्यता अभिव्यक्त की जा रही है कि आपके तप संयम की विशिष्ट साधना एवं आराधना से कपर्दियक्ष, चक्रेश्वरी देवी तथा गोमुख यक्ष आपकी सेवामें उपस्थित रहते थे. पू. मुनिराजश्री द्वारा मीमांसा :- अपने दिल में रहा हुआ पाप आचार्य ने “श्रद्धालुओं द्वारा परम्परा से यह मान्यता अभिव्यक्त की जा रही है"- इन शब्दों में प्रकाशित किया है, क्योंकि यहां श्रद्धालु और परम्परा जैसे घटिया शब्दों की आवश्यकता ही क्या थी ? आचार्य ने यहां 'श्रद्धालुओं' शब्द का तात्पर्यार्थ नहीं लिखा है किन्तु आचार्य का तात्पर्य ऐसे लोगों से हो सकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005025
Book TitleSthaviravali ane Teni Aaspas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunsundarvijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2007
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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