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________________ સ્થવિરાવલી ૧૫૭ है जो कि किवदन्ती या अंधश्रद्धा में विश्वास रखते हों, परन्तु "श्रद्धालुओं" ऐसा शब्द लिखना अनुचित इसलिये है कि तो क्या आचार्य स्वयं 'अश्रद्धालु' हैं ? तथा ‘परम्परा से ऐसा लिखने के पीछे आचार्य की जघन्य भावना यह रही होगी कि परम्परा से यानी रुढ़ि से यानी गतानुगतिकता से श्रद्धालुभक्त ऐसी भावना व्यक्त करते हैं यानी स्वयं आचार्य का इसमें अविश्वास है. मीमांसा:- आगमेतर प्राचीन जैन साहित्य में कहा है साथ साथ आचार्य ने खंड २, पृ. ६७६ पर लिखा है, किन्तु यहां ‘परम्परा से' एवं 'श्रद्धालुभक्त' ये दो शब्द लिखना उनका अनुचित है. पूज्य देवर्द्धि गणि की सेवा में कपर्दियक्ष, चक्रेश्वरी देवी तथा गोमुखयक्ष रहते थे, तो इस बार में आचार्य को क्या नाराजगी है ? "देवा वि तं नमसंति" इस आगम वचनानुसार संयमी पुरुषों को देव नमस्कार करते हैं यह सत्य तथ्य होते हुए भी ‘परम्परा से' “श्रद्धालु' आदि शब्दों के लिखने की आवश्यकता ही क्या है ? आगमिक तथ्य होते हुए भी देव-देवियों के तथ्य का आचार्य अपलाप क्यों करते हैं ? इतने महान उपकारक आगम-संरक्षक श्री देवर्द्धिगणि महाराज के विषय में आचार्य हस्तीमलजी प्रशंसा के दो शब्द तो न लिख सके किन्तु उपकार का बदला ‘परम्परा' और 'श्रद्धालु' जैसे घटिया शब्द लिखकर अपकार से चुकाया है, जिसका हमें खेद है. मथुरा के कंकाली टीले की खुदाई पू. मुनिराजश्री द्वारा मीमांसा :- कंकाली टीले में से निकले हुए प्राचीन अवशेषों से आचार्य हस्तीमलजी ने कल्पसूत्र एवं नन्दीसूत्र की स्थविरावलियों को प्रामाणिक और विश्वसनीय सिद्ध किया है, किन्तु मूर्तिमान्यता के विषय में एक शब्द भी लिखना उन्हें अभिष्ट नहीं है, जिसका हमें खेद है. एक आचार्य पदारुढ़ इतिहासकार प्रामाणिकता और तटस्थता की प्रतिज्ञा करने पर भी धृष्टता करे क्या यह खेद की बात नहीं है ? विश्ववंद्य भगवानश्री महावीरस्वामी की प्रतिमा कंकाली टीला, मथुरा से प्राप्त ईसा की १-२ शताब्दी वर्तमान में मथुरा म्यूजियम में है. आचार्यश्री लिखते हैं : मथुरा के कंकाली टीले की खुदाई से निकले ई. सन् ८३से १७६ तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005025
Book TitleSthaviravali ane Teni Aaspas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunsundarvijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2007
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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