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________________ की हिंसा हो रही है । मारे जा रहे हैं । पंच महाव्रत धारी साधु खुद माईक में बोलते हैं । लाईट के नीचे बैठते हैं । दिन-रात पंखों के नीचे बैठे-सोये रहते हैं । एरकंडीशन में बेठते हैं । टी.वी. पर रथ यात्रा देखते हैं । जिसमें वायुकाय एवं तेऊकाय दोनुं के असंख्य जीवों की हिंसा कर रहे हैं । प्रति दिन लेट्रीन का प्रयोग करते हैं |...... सुबह से लेकर शाम तक और शाम से लेकर सुबह तक हिंसा ही हिंसा का दौर चालू रहता है । तो सारा जैन समाज चिंतन करे कि कैसी है यह अहिंसा यात्रा ? अहिंसा नगर कोबा - जो नगर छ कायों की हिंसा से निर्मित हुआ है, सैकडों पंखें-सैंकडों बतियाँ नगर में जल रही हैं । रात को हजारों जानवर बत्ती के प्रकाश से मर रहै हैं । वायुकाय व अग्निकाय के जीवों की पूर्ण रूप से विराधना हो रही है । फिर इसका ‘अहिंसा नगर' नाम देना कहाँ तक उचित है ? सारा जैन समाज चिंतन करें ।.... आचार्य श्री तुलसीने अणुव्रत प्रार्थना में कहा है- “भौतिकवादी प्रलोभनों में । कभी न हृदय लुभाये हम” आज वर्तमान में देखतें है आप कितने भौतिकवादी साधनों में लिप्त हो रहे हैं । माईक, पंखा, एरकंडीशन, टी.वी., लाईट, फौटू, टेप आदि का प्रयोग आप खुलम खुला कर रहे हैं । यह सबके सब भौतिक साधन है । फौटू के वीडीयों केमरे तो ३६५ दिन ही आपके सामने लगे रहते हैं ।.... शुद्ध साध्य के लिए शुद्ध साधन का होना अनिवार्य है । यह तेरापंथी का अकाट्य सिद्धांत है ।..... तेरापंथ समाज का भोजनालय :- जैनधर्म में मूर्तिपूजक समाज व बाईस संप्रदाय समाज के भोजनालयों में देखते हैं तो वे आलू, प्याज (जमीकंद) का बिल्कुल प्रयोग नहीं करते हैं । पाँचों तिथियों को हरी सब्जी का साग नहीं बनाते हैं । सूका साग बनाते हैं । उन्होंने जैन धर्म के आदर्शों को कायम रखा है । इसके विपरीत वर्तमान में तेरापंथ समाज में (११3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005015
Book TitleVidyut Prakashni Sajivta Ange Vicharna
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorYashovijay of Bhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2002
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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