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________________ SO900 RECENERG AARI PPPPRO XXXSTORSXSXSEXSI WANNNAN सत्कार (वस्त्रालंकारादि से) २ पूजन (पुष्पादिसे) Doorced १ वंदन ४ सन्मान (स्तुति आदि से) ५बोधिलाभ आरहतचइयाणं ६ निरुपसर्ग (मोक्ष) श्रद्धा मेधाशुद्धशास्त्रग्रहण धृति. कुःखचिन्तामुक्त धारणा चित्तोपयोगदृढता जीवादितत्त्व प्रतीति से के आदर कौशल्य से. मनःसमाधिरुप धैर्य से अविस्मरण से अनुप्रेक्षा वयार्थानुचिंतन से श्रद्धा से, शरम-बलात्कार से नहीं। जलशोधकमणिबत चित्तमालिन्यशोधक Jain Educa t ional मेधा से, धृति से, धारणा से अनुप्रेक्षा से, जडता से नहीं रागद्वेषादि-व्याकुलता से नहीं चित्त की शून्यतासे नहीं तत्त्वार्थचिंतन के बिना नहीं औषध के समान चिन्तामणि-समान जिनोक्त मोतीमाला में परोये मोतीवत । आगरत्न से कमिलशोधक अग्निसन चितरोगनाशक सम्यक्शास्त्र के धर्म की प्राप्ति से दुःख चिन्तनपदार्थों अनुप्रेक्षा से अनुभूत बाहण-आदर-कौशल्य मेधा चिन्तामुनि लाम का दृढ संकलनधारणा अभियासविशेष-परमसंवेगदरता अधिकाधिक संप्रत्यय-कर्मबाश-केवलज्ञान Aaina
SR No.004986
Book TitlePratikraman Sutra Sachitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages124
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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