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पाहा त्यारे सा पाम्यो, खाया प्रझरना (गुएा) समूहवाणी ! खयल સ્વરૃપી ! હૈ મહેશ્વરી ! તને નમસ્કાર થાઓ.
4.
જ્યારે સિંહ નાદ કરવા લખ્યો ત્યારે પૃથ્વી પણ ચાલવા લાગી, અને ભચી પોતાની સેના સાથે અસુરાધિપતિ ભાગી ગો, ક્રોધના કંપથી દ્રષ્ટિને ઢાંકી દેનારી ! પ્રચંડ એવા મુંડ (राक्षस) नो घात डरनारी ! सिंह नाघ्थी गर्भना पामेली ! हे महेश्वरी ! तने नमस्कार थाओ.
9.
રકતચંદનથી પૂજિત થયેલા દુર્ગા દેવીના સિંહાસનવાળી ! શ્વેત-દક્ષ હાથીને ધારણ કરનારી ! પૂજાથી ઉત્તમ મુખવાળી ! નિશુંભ-શુભ નામના રાક્ષસનું મર્દન કરનારી ! મેં સમસ્ત દોષનો घात डरनारी ! पवित्रा ! थंडिडे ! बुद्धिने खापनारी! लक्ष्मी या ! શુભસ્વરૂપી ! હું પ્રસન્ન થા ! હૈ મહેશ્વરી ! તને નમસ્કાર થાઓ,,
તું જ વિશ્વને ધારણ કરનારી ! તું જ વિશ્વને કરનારી ! તું જ સર્વનું હરણ કરનારી ! તું યોગીઓ વડે પણ જણાતી નથી, દેવોના કલ્યાણમાં આસકત થયેલી તું અસુરોનો નાશ કરે છે. હું શત્તાસી! (એકસો આંખવાળી !) લાલ દાંતવાળી ! મહેશ્વરી તને નમસ્કાર थाओ.
८.
જે મનુષ્યો અનન્ય ભક્તિથી યુક્ત, હંમેશા એક ચિત્તવાળા येता जास्तपन (स्तोत्र ) जो हररो४ भुजेचारे छे. ते પંડિતો પુત્ર ધાન્યથી સહિત સ્ત્રી અને આબાદી થી સંયુક્ત થાય છે. અને અમૃત સુખને પામે છે.
C.
संपूर्ण.
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७० अनुवाद
हे त्रिशूल चक्र धारण करनेवाली सरस्वती देवी ! तुम्हें नमस्कार हो । श्वेत वस्त्र परिधान की हुई, शुभ स्वरूपे ! सिंह की पीठपर परिचय की गयी सुन्दर मनोहर अधरवाली ! सुन्दर गुंथे हुए बालोवाली, सुवर्णपुष्य से शोभायमान हे महेश्वरी ! तुम्हें नमस्कार हो !
१.
हे पितामह आदि द्वारा स्तुति की हुई ! स्व कांति से चंद्र की कांति को लुप्त करनेवाली, रत्नों की माला पहनी हुई ! भवसागर के कष्ट को हरण करनेवाली ! तलवार वाले हाथ से शोभित, तिलक युक्त कपाल से सुन्दर बनी हुई, पंडितों को अगोचर ऐसी, हे वाणी स्वरूपे ! हे महेश्वरी ! तुम्हें नमस्कार हो ।
२.
अपने भक्त पर वात्सल्यवाली! पुण्यशालिनी ! सदा मोक्ष और योग देनेवाली! दारिद्र-दुःख को हरनेवाली ! तीनो लोको की
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पार्वती ! स्वामिनि ! भयंकर दुर्गा और अंबिका स्वरूपा ! प्रचंड तेज से उज्ज्वल ! भुजा समूह से मंडित ! हे महेश्वरी ! तुम्हें नमस्कार हो ! ३.
प्राप्तभव का नाश करनेवाली ! पुष्पमालामय कंठवाली ! बुद्धि के अहंकार का बिदारण करनेवाली ! विशुद्धबुद्धिकारिणी ! देवताओ द्वारा पूजित पादपंकजोवाली ! प्रचंड पराक्रमी परमेश्वरी ! विशाल कमल समान नेत्रोंवाली ! हे महेश्वरी ! तुम्हें नमस्कार हो । ४.
जब तुम ने दैत्यों सहित शुंभासुर का वध किया, तब स्वर्ग के देवो द्वारा पुष्पमाला की वृष्टि की गयी। वहाँ तुम्हारा तेज देखकर सूर्य भी तब लज्जित हुआ। इस तरह के ( गुण) समूहवाली ! अचलस्वरूपिणि! महेश्वरी! तुम्हें नमस्कार हो।
५.
जब सिंहनाद (गर्जना) करने लगा तब पृथ्वी भी चलायमान हुई, और भय के मारे असुराधिपति अपनी सेना सहित भाग गया। क्रोध के कंप से द्रष्टि को ढकनेवाली ! प्रचंड मुंड (राक्षस) का पात करनेवाली ! सिंहनाद से गर्जना प्राप्त हे महेश्वरी ! तुम्हें नमस्कार हो। ६.
रक्तचंदन से पूजित हुए दुर्गादेवी के सिंहासनवाली ! श्वेतदक्ष हाथी को धारण करनेवाली! पूजा से उत्तम मुखवाली! निशुभशुभ नामक राक्षसो का मर्दन करनेवाली! हे समस्त दोष का घात कनरेवाली ! पवित्रे ! चंद्रिके ! बुद्धि देनेवाली ! लक्ष्मीरुपा ! शुभस्वरूपिणि ! तू प्रसन्न हो ! हे महेश्वरी ! तुम्हे नमस्कार हो ! ७.
तू ही विश्व को धारण करनेवाली, तू ही विश्व बनानेवाली ! तु ही सब का हरण करनेवाली है। तू योगियों को भी ज्ञात नहीं होती ! देवो के कल्याण में आसक्त तू असुरो का नाश करती है। हे शताक्षी! ( सौ आंखोवाली ।) लाल दाँतोवाली ! महेश्वरी ! तुम्हें नमस्कार हो ।
6..
जो मनुष्य अनन्य भक्ति से युक्त, हमेशा एकचित्तवाले बनकर इस स्तवन (स्तोत्र ) का प्रतिदिन मुख से पाठ करते हैं वे पंडितसुपुत्र धान्य सहित स्त्री एवं समृद्धि से संयुक्त होते है, और अमृतसुख को प्राप्त करते है ।
सम्पूर्ण
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