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સેરવાળા હારના સમૂહવાળી, કંદોરાથી શોભતી કેડે વીંટળાયેલી મેખલાવાળી, રતનની અંગૂઠી (વીંટીઓ) થી શોભતી આંગળીવાળી, ક્રીડાપૂર્વક ચપળ લોચનના છેડા (ખૂણા)થી, રાજાઓના વાંકડીયાવાળ વાળા મસ્તકને ઝૂકાવતી જ્ઞાનની કલ્પલતાની કળાસમાન, અનુપમ એવી રમણીય શારદાને હંમેશા શરણે જાઉં છું.
१०. નિયમિત વ્રતવાળો જે આ સરસ્વતીના સ્તવનને ધારણ કરે છે તેને શીઘ સરસ્વતીનો પ્રકાશ પ્રત્યક્ષ થાય છે. ૧૧.
જગત્ માતાની કૃપાથી પ્રાપ્ત આ સ્તોત્રને જે મનુષ્ય વાગ્મીજથી સંપુટિત કરીને શિવાલયમાં જપે છે તે બુદ્ધિ વૈભવને પ્રાપ્ત કરે છે.
१२. સૂર્યગ્રહણ વખતે જપવામાં આવેલ આ સ્તોત્ર સિદ્ધિકારક થાય છે. વિશેષત - વારાણસી પુણ્ય તીર્થમાં આ તાત્કાલિક ઈચ્છિત ફળને આપનારું બને છે.
१3. કાશીપીઠના અધિપતિ શંકરાચાર્ય ભિક્ષદ્વારા સરસ્વતીના ચરણકમલમાં પોતે રચેલી માળા સમર્પિત કરવામાં આવી.૧૪.
સપૂર્ણ.
लक्ष्मी से जिसकी सब इच्छाए बरसाई गई हैं, वह ब्रह्मा की पत्नी (सरस्वती) हमारे प्रिय (इच्छित) की पूर्ति करे।
लक्ष्मी का वाहन सचमुच उल्लू है और आपका वाहन हंस है यह भेद विख्यात है। हे जगत्कर्ता (ब्रह्मा) की पटरानी ! हे माता ! तुम हमे सभ्य बनाओ, न कि धनवान् ।
उत्तम व्रतधारी, निर्मल चरित्रवालो मे प्रसिद्ध, भीतर से उज्ज्वल, सब व्यवहारो मे स्वच्छ, आपकी श्रेष्ठ शरण मे पहुँचा हुआ, कभी आपके स्वच्छ ब्रह्मस्वरूप मे प्रवेश करे। ७
सूर्य, चन्द्र और अग्नि की दीप्ति की श्रेणियो से प्रदीप्त सिंहासन जिसमे है, जिसमे निरन्तर वाद्य-गान होता है, ऐसे करुणा (प्रेम) के अमृत से भरे मेघ के समान शोभायमान मातृ- मंदिर मे हम जाते है।
६० अनुवाद
सौंदर्य और माधुर्य के अमृत-सागर मे विकसित कमल के आसन पर विराजमान, चंचल वीणा की कलध्वनि से मुग्ध, फैलती हई सुगन्धवाली शुद्ध देवी को मैं अन्तस्तल मे धारण करता हूँ। १ __ जिसका वेदो, स्मृतियो और उनके पदोरूपी पद्म की सुगन्ध और प्रभा से युक्त, अपार इष्ट वाङ्मय कोने-कोने मे व्याप्त हो गया है, उस सम्पूर्णत: श्वेत (उज्ज्वल) माता सरस्वती का हमने आश्रय लिया है।
समय बीत जाने के बावजूद सूर्य से भयभीत न होनेवाले उस तीक्ष्ण कौशिक (उल्लू, विश्वामित्र ऋषि) की मैं प्रशंसा करता हूँ। सावित्री और सारस्वत (गायत्री और शारदा) के धाम को देखनेवाले, प्रशस्त तप से ब्राह्मण बने उस विश्वामित्र का मैं आदर करता हूँ।३
जिसके पास सिद्धोंमे विद्याकी प्रार्थना की है, उस उत्तम शरत्कालीन कमल सदृश लोचनवाली, मनोहर - शरत्कालीन कमल जिसे पवन (डालता है) उस शारदा को मैं भजता हूँ। ४
राजहंस द्वारा प्रशंसित पाद पद्म है जिसके, लक्ष्मी के द्वारा जिसके सुन्दर स्मित की इच्छा की गई है, स्मित (मुसकान) की
श्वेत कमल के समान मुग्धमुखवाली, उज्ज्वल वस्त्रो से सुशोभित, सुन्दर अंगोवाली, कल्याण कारक , और शुभ्र हास्य से चमकती हुई श्वेत पुष्पमालाओ से शोभायमान, उज्ज्वल और अत्यन्त सुन्दर निवासिनी शोभावाली, निर्मल अन्त: करणवालो के पास आयी हुई, भय को दूर करनेवाले भाव से भरी हुई, उज्ज्वल कांतिवाली, देदीप्यमान श्री भारती (देवी) को मैं भजता हूँ। ९
मोतियो से अलंकृत चोटियोवाली रत्नो की लडियो के हारसमूहवाली, सुन्दरकरधनी से सुशोभित कमर मे कटि मेखला-युक्त, रत्न की अंगूठियो से अलंकृत अंगुलियोंवाली, क्रीडा पूर्वक, चंचल नेत्रो के किनारो से राजाओ के धुंघराले बालोवाले मस्तको को झुकानेवाली, ज्ञान की कल्पलता की कला के समान, अनुपम रमणीय शारदा की शरण मे सदा जाता हूँ।
१० जो नियमित व्रती सरस्वती के इस स्तवन को धारण करता है उसे सरस्वती का प्रकाश शीघ्र प्रत्यक्ष होता है।
जगन्माता की कृपा से प्राप्त इस स्तोत्र को जो मनुष्य वाग् बीज से सम्पुटित करके शिवालय में जाप करता है वह बुद्धि-वैभव प्राप्त करता है।
सूर्य ग्रहण के समय पर जपा हुआ यह स्तोत्र सिद्धि कारक होता है, विशेषत: वाराणसी, पुण्यतीर्थ में यह तात्कालिक -शीघ्र ही - इच्छित फल दायक होता है।
काशी-पीठ के अधिपति शंकराचार्य भिक्षु के द्वारा बुनी गयी यह माला (रचना) सरस्वती के चरण-कमलो मे समर्पित की गयी।
। सम्पूर्णम्।
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