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त्रिपुरा अचिंत्य रूप और महिमावाली परा (श्रेतु) शक्ति कहलाती
१५.
हो ।
श्लोक मंत्र : ॐ ह्रीँ श्रीँ भारत्यै नमः । वचन सिद्धि होती है।
"
हे भगवती ! इस संसार में जो कोई भी तीन प्रकार की वस्तुएं निशय है। तीन देव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) तीन प्रकार के अग्नि ( दाक्षिणात्य, गार्हपत्य आह्वानीय) तीन प्रकार की शक्ति (इच्छा, ज्ञान, क्रिया रूप) तीन स्वर (उदात्त, अनुदात्त, समाहार) तीन लोक (स्वर्ग, मर्त्य, पाताल) तीन पद (उत्पाद व्यय ध्रुव) तीन तीर्थ ( मस्तक, हृदय, नाभिकमल) तीन ब्रह्म (इडा पिंगला, सुषुमणा रुप) तीन पर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) तीन शक्ति बीज, एवं तीन वर्ग (धर्म, अर्थ, काम ) इत्यादि सब सचमुच त्रिपुरा तुम्हे अनुसरते है ।
१६.
श्लोक मंत्र : ॐ सरस्वत्यै नमः । जाप से विद्या प्राप्ती होती है ।
(भक्त लोग) राजद्वार पर तुम्हे लक्ष्मी स्वरूप में, युद्धभूमि में जया स्वरूप में, राक्षस, हाथी और सर्पवाले मार्गमें क्षेमंकारी स्वरूप में, विषम और भयानक मार्ग वाले पर्वत पर (जाते) शबरी स्वरूप में, भूत, प्रेत, पिशाच और दैत्य के भय में महाभैरवी स्वरूप में, वित्तभ्रम के समय त्रिपुरा स्वरूप में और पानी में डूबते समय तारे के स्वरूप में स्मरण करके विपत्ति को पार करते है ।
१७.
श्लोक मंत्र : ॐ ह्रीँ श्रीँ शारदायै नमः ।। चौदा विद्या प्राप्त होती है।
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माया कुण्डलिनी, क्रिया मधुमती, काली, कला मालिनी, मातंगी, विजया, जया, भगवती, देवी, शिवा, शांभवी, शक्ति, शंकरवल्लभा, त्रिनयना, वाग्वादिनी, भैरवी ह्रींकारी, त्रिपुरा, परापरमयी, माता और कुमारी ये सभी तुम्हारे ही रूप है। इस रीत से (२४ नामो की) स्तुति की गई है।
१८.
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श्लोक मंत्र : ॐ हंसवाहिन्यै नमः । शारदा देवी वरदान देती है।
हे त्रिपुरा ! आ इ आकार इकार संयुक्त (परस्पर) मिलाने के लिए दो, तीन, चार इत्यादि अक्षरों के साथ, 'क' आदि से 'क्ष' अन्त तक के व्यंजनों, वो स्वरोके साथ यानि कि प्रत्येक क से क्ष तक के रूप वर्णो को सोलह स्वरो से गीनते जो तुम्हारे अत्यंत गुह्य नाम होते है । हे भैरवी पति ! तुम्हारे वो सर्व वीस हजार नामो की नमस्कार हो । १९.
श्लोक मंत्र : ॐ जगन्मात्रे नमः । त्रिकाल जाप से शारदा देवी संतोषी होती है।
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त्रिपुरा भारती की इस स्तुति को बुधजनो तन्मय चित्त कर निपुणता से समजने का प्रयास करे। स्तोत्र के आद्य श्लोक में स्पष्ट रुप से एक, दो, तीन पद के क्रम इतनेही अक्षर से सच्चे संप्रदाय से युक्त विशेषता साथ मंत्रोंद्वार का विधि कहा है। २०. श्लोक मंत्र : ॐ भगवत्यै महावीर्यायै नमः धारकस्य पुत्रवृद्धिं कुरु कुरु स्वाहा ।।
त्रिकाल जाप से परिवार वृद्धि होती है।
यह स्तोत्र सावध है के निरवद्य है ऐसी चिंता से क्या ? जिस मनुष्य को तुम्हारे (त्रिपुरा) लिए भक्ति है, वो जन नक्की ही इस स्तोत्र का पाठ करेगा। मैं द्रढता से मानता हूँ के मैं लघु हुँ, सामान्य हु फिर भी नक्की तुम्हारी भक्ति ने ही बलात्कार से मुझे वाचाल करके तेरा स्तोत्र रचाया है।
२१.
श्लोक मंत्र : ॐ ऐं क्लीं लक्ष्मीं कुरु कुरु स्वाहा ॥ त्रिकाल जाप से धनाढ्यता प्राप्त होती है।
| सम्पूर्णम् ।
४९
। श्री लिनपुराणे बृहस्पतिकृतस्तोत्रम् |
पाटण प्रत नं. १४७५० अनुष्टुप.
ॐ अस्य श्री सरस्वती स्तोत्रस्य नारायण ऋषिः ।। श्री सरस्वती देवता । अनुष्टुपछन्द ॥ मम वासिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।।
सरस्वतीं नमस्यामि चेतनां हृदि संस्थिताम् । कंठस्थां पद्मयोस्तु ह्रीं ह्रींकारप्रियां शुभाम् मतिदां वरदां शुद्धां वीणाहस्तां वरप्रदाम् । मंत्रप्रियां ह्रीं क्लीं कुमतिध्वंसकारिणीम् सुप्रकाशां निरालम्बामज्ञानतिमिरापहाम् । शुक्लां मोक्षप्रदां रम्यां सुभगां शोभन प्रियाम् आदित्यमंडले लीनां प्रणमामि हरेः प्रियाम पत्रोपविष्टां कुण्डलिनीं शुक्लवर्णां मनोरमाम् इति सा संस्तुता देवी वागीशेन महात्मना । आत्मानं दर्शयामास शरदिंदुसमप्रभाम्
श्री सरस्वती उवाच :
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