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________________ व्यंजन सहित हो (ऐं क्लीं हसौं) या व्यंजन रहित मात्र स्वरमय (ऐ ई औ) हो, कूटस्थ (सौँ ह्स्क्ली ) या लोक प्रसिद्ध परिपाटी से प्राप्त हो या विपरीत रीत से रहा हुआ हो फिर भी जो जो इच्छित अर्थ के लिए जो कोई भी विधि से चिंतन किया हो (स्मरण किया हो) अथवा जाप किया हो, वो जल्दी से मनुष्यो को समस्त इच्छित वस्तु (बीजाक्षरी के प्रभाव से) सफल होती है। ६. श्लोक मंत्र : ॐधारकस्य सौभाग्यं कुरु कुरु स्वर्ण। सौभाग्य मंत्र बाये हाथमें पुस्तक को धारण करनेवाली तथा दुसरे बाये हाथ में अभय मुद्रावाली, दाये हाथ में जपमाला रखनेवाली और दूसरे दायें हाथसे भक्तो को वरदान देने में कुशल हस्तवाली, कपूर मोगरे के पुष्पों की तरह उज्ज्वल, सुविकसित कमल की पत्तियो जैसी मनोहर नयन की स्नेहसभर प्रभा से देखनेवाली, ऐसी तुम्हारी, हे माता ! मन से भी जो आराधना करते नहीं, उन्हे कवित्व कैसे प्राप्त हो ? अर्थात् नहीं होता। श्लोक मंत्र : धरण्यै नम: सौभाग्यं कुरु कुरु स्वाहा विशेष सौभाग्य मंत्र है। हे भारती देवी ! श्वेत कमलो के समूह जैसी उज्ज्वल सुंदर प्रभावाली तुम्हे, मस्तक पर रहे कर अमृतरस से मस्तक पर जैसे सिंचन करती हो, ऐसा जो पुरुष, तुम्हारा ध्यान धरते है, उनके मुख कमल में से निरंतर उदार स्पष्ट (प्रगट) अक्षर वाले पद की सहाय से वाणी रुप गंगा नदी के तरंगोके चंचल उर्मियों बहेती हो । ऐसा आभास होता है। लोक मंत्र :एँ क्लीं श्रीं धनं कुरु कुरु स्वाहा। इस जापसे धनवान होते है। हे देवी ! तुम्हारे तेज की कांतिसे जो क्षण भर भी एकाग्र चित्तवाले होकर, इस आकारको सिंदूर की पराग के समूह से व्याप्त (फैला हुआ) हो गया हो, ऐसा ध्यान से देखते है, और पृथ्वी के झरते अलता के (वृक्षके) लाल रंग के रसमें मग्न हो गई हो, ऐसा ध्यान करते है, उसको कामदेव से पीडित, हिरण के भयभीत बच्चे जैसी आँखवाली स्त्रीयाँ वश होती है। श्लोक मंत्र : ॐ ह्रां ह्रीं ह्रः पुत्रं कुरु कुरु स्वाहा। त्रिकाल जाप से पुत्र प्राप्ति होती है। हे देवी ! जो पुरुष क्षणभर भी तन्मयता पूर्वक चित्त स्थिर कर के देदीप्यमान सुवर्ण के कर्णकुंडलो की बाजुबंध को धारण करनेवाली, कंमर पे बांधे हुए करधनीवाली, तुम्हारा ध्यान करता है, उनके घरमें उत्सुकता से प्रतिदिन उत्तरोत्तर मदोन्मत्त हाथी के चंचल कान की तरह लक्ष्मी चिरकाल तक स्थिरता करती है। १० श्लोक मंत्र : ॐ ह्रीं क्लीं महालक्ष्मै नम: जयं कुरु कुरु स्वाहा । त्रिकाल जाप से सर्वत्र जय को प्राप्त होती है। हे देवी! चंद्र की कला से सजाये हुए मुगुटवाली, मनुष्यो की खोपरी के कपाल की माला जपाकुसुम जैसे लाल वस्त्र को धारण की हुई, प्रेतासन इसी बीज के उपर बिराजमान, चार भूजावाली, तीन नेत्रवाली, चारी बाजु से पुष्ट और उंचे स्तनवाली, (नाभिके) मध्यभाग में गहरी तीन वलयो से अंकित शरीरवाली, तुम्हारे स्वरूप की संपत्ति के लिए वीररस से तुम्हारा ध्यान करते है। ११. श्लोक मंत्र : ऐं क्लीं नमः। त्रिकाल जाप से कर्मक्षय होता है। हे भगवती! राजाओं के अल्प परिवार वाले सामान्य कुल में उत्पन्न हुए श्रीवत्स राज (नामक) राजा प्रचंड पराक्रम से अभ्युदय पाकर संपूर्ण पृथ्वी की चक्रवर्ति पदवी को प्राप्त करके विद्याधरो के समूह से वंदन किये गये स्थानवाला हुआ, वो इस तुम्हारे चरण कमल में नमस्कार करने से उत्पन्न हुई कृपा का उदय है। १२. लोक मंत्र : ब्लूँ ह्रीं नमः। त्रिकाल जाप से राज्य की प्राप्ति होती है। हे चंडी-भगवती ! तुम्हारे चरण कमल की पूजा के लिए जो पुरुषो के हाथो की बिल्वीपत्र को तोडते-तूटे हुए कांटो के अन भाग से संपर्क नही हुआ वो पुरुष दंड-अंकुश चक्र बाण-वज्रश्रीवत्स-मत्स्य (मछली) के चिह्न वाले कमल जैसे लाल हाथवाले राजा कैसे हो सकते है ? अर्थात् नहीं होते है। श्लोक मंत्र : हसौ नमः। त्रिकाल जाप से महाराजा पद की प्राप्ति होती है। हे देवी ! हे त्रिपुरा ! ब्राह्मणी-क्षत्रियो-वैश्यो (तथा) शुद्रो (इन चार वर्ण के लोग) पर और अपर कला (अवस्था) रुप तुम्हे पुजा के समय पर (अवसर) अनुक्रम से दूध-घी-मध और गन्ने के (मद्य) रसो से (तृप्त) प्रसन्न करके विघ्नो से अबाधित हुए जल्दी से वो जो जो चित्त प्रार्थना करते है, वो जरुर ही वो वो सिद्धि की प्रार करते है। श्लोक मंत्र : ॐवाङ्मय्यै नमः। त्रिकाल जाप से सर्व इच्छित होता है। __ हे त्रिपुरा ! इस भुवन (चौद लोक) में शब्दों को उत्पन्न करनेवाली (गाता) तुं है, इस लिए वाग्वादिनी कहेलाती है। और तुमसे ही विष्णु और इन्द्र इत्यादि भी प्रगट हुए है। (तथा) कल्प (सृष्टि) नाश के समय वो ब्रह्मा इत्यादि जहाँ लीन होते है। वो तुम १२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004932
Book TitleSachitra Saraswati Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandravijay
PublisherSuparshwanath Upashraya Jain Sangh Walkeshwar Road Mumbai
Publication Year1999
Total Pages300
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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