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________________ की गति के साथ स्पर्धा करनेवाली, आपके प्रथम वाग (ऐं) बीज में बसी है, उस मात्रा का सदा आपके भक्तों जैसे हम आदर करते है। यह कुंडलिनी शक्ति भगवती विश्व को उत्पन्न करने के व्यापार (कार्य) में (बद्ध उद्यमवाली) प्रयत्न करने वाली इस प्रकार की है ऐसे ही अच्छी तरह से जानने वाले मनुष्य फिर से माता के गर्भ में बालक रूप में स्पर्श पाते नहीं। अर्थात् फिर से जन्म धारण नहीं करते है। लो मंत्र:- ॐ हंसवाहिन्यै नमः ।। શારદાદેવી વરદાન આપે. हे त्रिपुरा! आइ साहारडार संयुत (परस्पर) भेजा વડે બે - ત્રણ - ચાર વિગેરે અક્ષરોની સાથે, ક આદિથી ક્ષા અન્તસુધીના વ્યંજનો તે સ્વરોની સાથે એટલે કે પ્રત્યેકથી ક્ષ સુધીના ૩૫ વર્ણોને સોળ સ્વરોથી ગણતાં જે તારાં અત્યંતગુહ્ય નામો થાય છે. હે ભૈરવીપતિ ! તારા તે સર્વ વીસ હજાર નામોને નમસ્કાર થાઓ. १. तो मंत्र:- ॐ जगन्मात्रे नमः। ત્રિકાલજાપથી શારદાદેવી સંતોષી થાય છે. ત્રિપુરા ભારતીની આ સ્તુતિને બધજનોએ તન્મય ચિત્ત કરી નિપુણતાથી સમજવા પ્રયત્ન કરવો. સ્તોત્રના પહેલા શ્લોકમાં સ્પષ્ટપણે એક-બે-ત્રણ પદના ક્રમથી તેટલા જ અક્ષર વડે જે સાચા સંપ્રદાયથી યુક્ત વિશેષતા સાથેનો મંત્રોદ્વારનો વિધિ કહ્યો છે. ૨૦. तो मंत्र:- ॐ भगवत्यै महावीर्यायै नमः धारकस्य पुत्रवृद्धिं _ कुरु कुरु स्वाहा। ત્રિકાલ જાપથી પરિવારવૃદ્ધિ થાય. આ સ્તોત્ર સાવદ્ય છે કે નિરવદ્ય છે એવી ચિંતાથી શું? જે મનુષ્યને તારા (ત્રિપુરા) વિશે ભકિત છે. તે જન નક્કી આ . સ્તોત્રનો પાઠ કરશે. હું દૃઢપણે માનું છું કે હું લઘુ છું. સામાન્ય છું છતાં પણ નક્કીતારી ભક્તિ એજ બલાત્કારે મને વાચાળ કરીને તારૂં સ્ત્રોત્ર રચાવ્યું છે. तो मंत्र:- ॐ ऐं ॐ ऐं क्ली लक्ष्मी कुरु कुरु स्वाहा। ત્રિકાલ જાપથી ધનાઢતા થાય છે. २१. श्लोक मंत्र : श्री वाङ्मय्यै नमः त्रिकाल जाप के पठन से सिद्धि प्राप्त होती है। हे मनोवांछित वरदान देनेवाली देवी! इस लोक में आश्चर्यकारी पदार्थ को अचानक देखकर कोई पुरुष भय के अभिप्राय से भी ऐ ऐ ऐसे बिंदु बिना भी अक्षर को बोलता है (व्यवहार करे) उसे भी सचमुच हे देवी! जल्दी से तुम्हारी कृपा प्राप्त होनेसे ध्यान करनेवाले के मुख कमल में से सूक्ति रूप अमृतरस की बरसान वाली वाणी नीकलती है। श्लोक मंत्र : स्यै व: क्रों नमः । त्रिकाल जाप से जगत वश्य होता है। हे नित्य स्वरूपा भगवती! जो तुम्हारा दुसरा कामराज (क्ली) नाम का कला रहित (शुद्धकोटि को प्राप्त किया हुआ) मंत्राक्षर सारस्वत बीजमंत्र है। वे इँ को पृथ्वीपर कोई विरल पंडित ही जान सकता है। प्रत्येक पर्व (पूर्णिमा-अमास) में सत्य तपस नाम के ब्रह्मर्षि के द्रष्टांत को कहते हुए ब्राह्मण कथा के प्रारंभ में ॐकार के स्थानरुप संबंध को समजा कर स्पष्ट उच्चार करते है। श्लोक मंत्र : ॐव: सरस्वत्यै नमः। पाठमंत्र है। जो (तीसरा हसौ मंत्र) चंद्र की कांति समान तीसरा बीज है। वाणी की पटुता (प्रवृत्ति) बताने में पंडितोने जल्दी प्रभाव देखा है। उस (मंत्र) को में मनसे नमस्कार करता हूँ। जैसे सरस्वती नदी को मिला वडवानल भी जडता रुपी जल के शोषण के लिए होता है। उसी तरह सकार रहित केवल औ जो सरस्वती बीज मंत्र है, वो जडता रुपी जल के उच्छेद के लिए होता है। गौ शब्द वाणी अर्थ मे वर्तन करता है, वह व्यंजन केायेग बिना ही (सारस्वत) सिद्धि को देनेवाला होता है। श्लोक मंत्र : योगिन्यै नमः। सर्व आपत्तियों का हरण होता है। संपूर्ण ४८ अनुवाद (ललाट के मध्य भाग में) इन्द्र के धनुष की कांति जैसी प्रभा को धारण करती, मस्तक पर चंद्रमा की तरह चारो और श्वेतकांति का विस्तार करनेवाली और सूर्य की द्युति जैसी हृदयमें निरंतर बसी हुई इस ज्योतिर्मयी (अनिर्वचनीय तेजस्वी) वाङ्मयी (वचनस्वरूपा) त्रिपुरा देवी तीन (वाग्भव बीज) कामराज बीज करूँ शक्तिबीज हसौं) पदो की सहाय से हमारे दुःख पापो का विनाश करे। मंत्रो २ : ऐं क्ली हसौं त्रिपुरा मूल मंत्र श्लोक मंत्र : श्रीं क्लीं ईश्वर्यै नम: त्रिकाल जाप से प्रगट होता है। हे त्रिपुरा ! ककडी की लता के प्रसरते सूक्ष्म तन्तुओं के, उपर हे भगवती ! देवी! तुम्हारे दोषरहित एक-एक बीजाक्षर, वो १२० For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004932
Book TitleSachitra Saraswati Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandravijay
PublisherSuparshwanath Upashraya Jain Sangh Walkeshwar Road Mumbai
Publication Year1999
Total Pages300
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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