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(इ) नाभेपा (लाल) होहपाजी, ३पनी रेजाने धारएा डरनारी, દિવ્ય યોગીઓની સ્વામિની, સર્વદા સમય વાંછિતોને અર્પણ સર્વગામી તથા સદા કલ્પવૃક્ષની લસ્સીને હસી કાઢતી એવી તું છે. તારી કૃપા વિના પ્રાણીઓની શી ગતિ છે ? શી બુદ્ધિ છે ? શી प्रीति छे ? शुं धैर्य छे ? तथा शी स्थिति छे ? (२) थी (9)
साट (हक्षिण गु४रात) एट ने डाश्मीर (खेहेशोमां) પ્રસિદ્ધિ પામેલી, લક્ષ્મીનાં સમલ્લાસ અને સૌભાગ્ય ને સચેતન डरनारी टिमेजसा (होश ) ना शब्होथी होने शुं खापवु छे ? અને કોનું શું ન કરવું છે ? કોને શું ઈષ્ટ છે ? અને કોને શું हुःशय छे ? होए होने साध्य छे ? पणी डोएा होने हुःज हे छे ? કોણ કોનાથી જીતાય છે ? કયું વરદાન આપવું જોઈએ ? એવું ઈષ્ટ વાકય ઉચ્ચારનારી હું સેવકોને લક્ષ્મી આપું છું. (૭)-(૮)
હે સરસ્વતી ! જે આ સ્તોત્રનું શુદ્ધ ભાવપૂર્વક તારી સમક્ષ પઠન કરે છે તે બૃહસ્પતિના સમાન થાય છે અને આ જગતમાં નિરંતર બુદ્ધિને ધારણ કરે છે. (e)
संपूर्ण.
४६ अनुवाद
शरद ( पूर्णिमा) के चंद्र की कांति की भ्रान्ति (शोभा) को धारण करने वाली और मधुर झांझ के बाद से संचार करनेवाली और मनोहर मौक्तिक (मोती) लता के हार रूप अलंकार से मुक्त ऐसी श्रीमती सरस्वती देवी शोभा दे रही हैं ।
१.
मनमोहक चूडा (कोर) वाला वस्त्र को और केतकी की सुगंध से सुवासित गाड चंदन को (शरीर पर ) धारण करने वाली, मालती के पुष्पों की माला से सुशोभित ग्रीवा (गरदन) वाली, कुंद, मंदार एवं बन्धूक (दुपहरिया के वृक्ष) के पुष्प की सुवास से परिपूर्ण ऐसी, बहुत सारे आभूषणो के विस्तारसे सञ्चार (गति) करने वाली, भयंकर दुर्भाग्य और दरिद्रता का विनाश करनेवाली, सुंदर दर्शनवाली और नेत्र को आनंद देने वाली, मृदु गोष्ठि रूपी अमृत को टपकाने वाली, उत्तम कर्पूर और कस्तूरिका से विभूषित, समस्त विज्ञान और विद्या को धारण करनेवाली विदुषी, जिसके हाथमें हार, अक्षमाला और कमलों को रखा है ऐसी, कंकण की सन्तति (समूह) से सुशोभित सुंदर हाथवाली, राजहंस के देहरुप क्रीडा विमान में रहनेवाली, वीणा से लालित, पुस्तक से विभूषित देदीप्यमान सुंदर स्वर (नाद) वाली, पक्व बिम्ब (फल) जैसे ओष्ठ (अधर) वाली रुप की रेखा को धारण करने वाली दिव्य योगियोकी स्वामिनी, सर्वदा समग्र वांछितों को अर्पण करने वाली, सर्वगामी और सदा कल्पवृक्ष की
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लक्ष्मीपर हँसनेवाली होवे ऐसी तूं है, तेरी कृपाके बिना प्राणियोंका क्या हाल है ? क्या बुद्धि है ? क्या प्रीति है ? क्या धैर्य है ? क्या स्थिति है ?...
२-६.
लाट (दक्षिण गुजरात) कर्णाटक और काश्मीर ( इन देशों में) प्रसिद्ध हुई, लक्ष्मी के समुल्लास और सौभाग्य को सचेतन करनेवाली, कटिमेखला (करधीनी) के शब्दों से किसको क्या देना है ? और किसको क्या नष्ट करना है ? किसको क्या इष्ट है ? और किसको क्या दुःशक्य है कौन किसको साध्य है? फिर कौन किसको दुःख दे रहा है ? कौन किससे जीत हो रहा है ? क्या वरदान देना चाहिये ऐसा इष्ट वाक्य बोलनेवाली मैं सेवकों को लक्ष्मी दे रही हूँ । ७-८.
हे सरस्वतो जो इस स्तोत्रके शुद्ध भावपूर्वक तेरे सम्मुख, पठन करता है वो बृहस्पति के समान होता है और इस जगत में निरंतर बुद्धि को धारण करता है । .....
९.
। इति सम्पूर्णम् ।
कविकलिदासविरचितं श्री शारदास्तोत्रम्।
पाटण हे. ज्ञा. भं. प्रत नं. ११६७६, सूरत ह.लि. ज्ञा. ४२६ / ३९२७ द्रुत 'विलंबित छंद :- सरस शांति सुधारस....
विपुलसीख्यमनंतधनागमं रिपुकुले जयमिष्टसमागमं । निगमशास्त्रविवेकमहोदयं भवति पंचविनायकदर्शनम् विशदशारदचंद्रसमानना, मृगपयोभविखंजनलोचना । तरुणभूरूहपल्लवताधरा, हरतु नो दुरितं भुवि भारती श्रवणमण्डितसन्मणिकुण्डला, भ्रमर-मर्तिकज्जलकुन्तला । कनकरत्नमनोहरमेखला हरतु नो दुरितं भुवि भारती
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विधुमरालपयोच्छविदुज्वला, तनुलताकुसुमाम्बुजपेशला । दशनदाडिमबीजविराजिता, हरतु नो दुरितं भुवि भारती
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स्तनविडम्बितमतदुन्नति (घटोन्नति) स्तददुरोज्झितकुंजरकुम्भहा। चरणकांतिजितारुणपंकजा हरतु नो दुरितं भुवि भारती विमलविद्रुमपाणिरुहासना, सलिलसंभवनालिलसभुजा । कमलकुंकुमजा चितचित्करा, हरतु नो दुरितं भुवि भारती ॥६॥ प्रगट पाणि (पीन) करे जपमालिका, कमलपुस्तकवेणुवराधरा । धवलहंस समाश्रित वाहना, हरंतु नो दुरितं भुवि भारती ॥७॥ हरति सैवपति र्वसूभूधरा, सकलधर्मसुधारससागरा । मनुजमानजजल्पमहोरवि, हरतु नो दुरितं भुवि भारती कमलकंधसिताचरणां वरां मुकुटकंकणहारसदांगजा ।
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