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________________ ९४ चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ हिअएजहक्कमं दिवाकए अईआरे ॥ पारेत्तु नमोक्कारे, न पडइ चउवीसथयं दंडं ॥५॥ संडासगे पमज्जिअ, उवविसिअ अलगाविअयबाहुजुओ ॥ मुहणं तगं च कायं, च पेहए पंचवीसइहा ॥६॥ उठिअछिओसविणयं, विहिणा गुरुणो करेइ किइकम्मं ॥ बत्तीस दोसरहिअं, पणवीसावस्सग्गविसुद्धं ॥७॥ अह संमम वणयंगो, करजुअ विहिधरिअ पुत्तिरयहरणो ॥ परिचिंतईअइआर, जहक्कम्म गुरुपुरोविअडे ॥८॥ अहउव विसित्तु सुत्तं, सामाइय माइअं पढिअ पयओ ॥ अद्भुछिम्हि इच्चाई, पढई दुहउठिओ विहिणा ॥९॥ दाऊणं वंदणं तो. पणगाई सुजइ सुखा मए तिण्णि ॥ किइ कम्मं करिअ आ, यरिअमाईगाहातिगं पढए ॥१०॥ इअ सामाइअ उस्सग्ग सुत्तमुच्चरिअ काउस्सग्गठिउ ॥ चिंतइ उज्झोअडुगं, चरित्त अइआरे सुद्धिकए ॥११॥ विहिणा पारिअ संम, त्त सुद्धिहेउं च पढइ उज्झोअं ॥ तह सव्वलोअ अरहं, त चेइआराहणुस्सग्गं ॥१२॥ काउं उज्झोअगरं, चिंतिअपारेइ सुद्ध सम्मत्तो ॥ पुक्खरवरदीवड़े, कट्टइ सुहण निमित्तं ॥१३॥ पुणपणवीस्सुस्सासं, उस्सग्गं कुणइ पारण विहिणा ॥ तो सयल कुशल किरिआ, फलाणसिद्धाण पढइ थयं ॥१४॥ अहसुअ समिद्धि हेडं, सुअदेवीए करेइ उस्सग्गं ॥ चिंतेइ नमुक्कारं, सुणइ व देइ व तीइ थुई ॥१५॥ एवं खेत्तसुरीए, उसग्गं कुणइ सुणइ देइ थुइ ॥ पडिऊण पंचमंगल, मुवविसई पमज्जसंडासे ॥१६॥ पुव्वविहिणे वपेहिअ, पुत्तिं दाऊण वंदणं गुरुणो ॥ इच्छामो अणुसटुिं, तिभणिअजाणूहि तो ठाई ॥१७॥ गुरुथुइ गहणे थुइतिज्झि वद्धमाण खरस्सरा पढई ॥ सक्कत्थवथवं पढि, अ कुणइ पज्जित्तत्थ स्सगं ॥१८॥ ___ (३३) भाषा । यह वृंदारुवृत्ति श्रावकके आवश्यककी टीका है तिसके अंतरगत चैत्यवंदना विधि है. तिसमें चार थुइसें चैत्यवंदना करनी लिखी है. तिसमें चौथी थुइके वास्ते जैसा पूर्वोक्त पाठ लिखा है. तिसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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