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________________ ७८ चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ अधिकारमें शासन देवताका कायोत्सर्ग और चौथी थुई कहनी कही है ॥२।। इसकी टीकामें सिद्धसेनाचार्ये चार थुइसें चैत्यवंदना करनी कही है. तथा च तत्पाठः ॥ समयभाषया स्तुति चतुष्टयं ।। तिनसें जो चैत्यवंदना सो मध्यम चैत्यवंदना जाननी ॥३॥ (२६) तथा श्रीउत्तराध्ययनकी बृहवृत्तिकार श्रीशांतिसूरिजीने संघाचार चैत्यवंदना महाभाष्यमें चोथी थुइका पूर्वपक्ष उत्तरपक्ष करके अच्छी तरेसें स्थापन करा है. सो भाष्यका पाठ यहां लिखते है ॥ वेयावच्चगराणं संतिगराणं सम्मदिट्ठि स० ॥ अन्नत्थउ० ॥ वेयावच्चंजिणगिह, रक्खण परिठवणाइ जिणकिच्चं ॥ संतीपड़णीयकउ, उवसग्गविनिवारणं भवणे ॥७६॥ सम्मद्दिठि संघो, तस्स समाहमणो दुहाभावो ॥ एएसिकरणसीला, सुरवरसाहम्मिया जे ओ ॥७७॥ तेसिं समाणच्छं, काउस्सग्गं करेमि एत्ताहे ॥ अन्नत्थूससियाई, पुव्वत्तागार करणेणं ॥७८॥ एत्थउ भणेज्ज कोई, अविरइगंधाणताणमुस्सग्गो ॥ नहु संगत्थइ अम्हं, सावयसमणेहिं कीरत्तो ॥७९॥ गुणहिणवंदणं खलु, न हु ज्जुत्तं सव्वदेसविरयाणं ॥ भणइ गुरु सच्चमिणं, एत्तो चियएत्थ नहि भणियं ॥८०॥ वंदण पूयणसक्का, रणाइ हेडं करेमि काउस्सग्गं ॥ वत्थलं पुणजुत्तं, जिणमयजुत्ते तणुगुणेवि ॥८१॥ ते हुपमत्ता पायं, काउस्सग्गेण बोहिया धणियं ॥ पडिउज्जमंति फुडपाडिहेर करणे दडुत्थाह ॥४२॥ सुच्चइ सिरिकताए, मणोरमाए तहा सुभद्दाए ॥ अभयाइणं पि कयं, सन्नेज्जं सासणसुरेहिं ॥८३॥ संघस्सगा पायं, वड्डइ सामथमिह सुराणंपि ॥ जहसीमंधरमूले, गमणे माहिलवि वायंमि ॥४४॥ जरका एवा सुच्चइ, सीमंधर सामिपायमूलंमि ॥ नयणं देवी एकयं, काउस्सग्गेण सेसाणं ॥८५॥ एमाहि कारणेहिं, साहम्मिय सुरवराण वच्छलं ॥ पुव्वपुरिसेहिं कीरइ, न वंदणाहेउमुस्सुग्गो ॥८६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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