SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ अब बुद्धिमानोकों विचारना चाहियेंके कल्पभाष्य गाथा के अनुसारे मध्यम चैत्यवंदनामें चार थुई कही अने पंचशक्रस्तव रुप उत्कृष्ट चैत्यवंदनामें आठ थुई कहनी कही । इन दोनों पंचाशकके लेखोंकों छोडके एक मध्यके तीसरे पक्षकोंही मानना यह क्या सम्यग् दृष्टियोंका लक्षण है ? कदापि रत्नविजयजी अरु धनविजयजी जैसे मान लेवेके शास्त्रमें तीन थुईभी किसीके मतसें कही है। और चार थुईभी कही है ये दोनो मत कहे है; इनमेंसें हम एककाभी निषेध नही करते है, परंतु हमारे तपगच्छके पूर्वाचार्य तथा अन्य गच्छोकें आचार्य सब चार थुई मानते है तो इनकी क्या हानी है? हमारा अनुभव मुजब अन्य तो कोइभी हानी दिखनेमें नही आती है; परंतु जिन श्रावकोंके आगें प्रथम अपने मुखसें तीन थुइकी श्रद्धा प्ररुप चूके है फेर तिनके आगें चार थुइकी प्ररुपणा करनेसें लज्जा आती है । उनकुं हम कहते है के हे भव्य लज्जा रखनेसे उत्सूत्र प्ररुपणा करनी पडती है. इस्से संसारका तरणा कदापि नही होवेगा, परंतु पंचाशककी कथन करी जो चार वा आठ थुइ तिनका निषेध करनेसें उलटी संसारकी वृद्धि होनेका संभव होता है, तो इस्से हमारे लेखकों बांचकर जो भव्यजीव मतपक्षपातसें रहित होवेगा सो कदापि चार थुइका निषेध अरु तीन थुइके माननेका आग्रह न करेगा ॥ इति पंचाशक पाठनिर्णय ॥१॥ (६) प्रश्नः- पंचाशकजीमें चोथी थुइकू किसीके मत प्रमाणसें श्रीअभयदेवसूरिजीयें अर्वाचीन कही है ? अरु वो अर्वाचीन पदका क्या अर्थ है ? उत्तर:- हे भव्य जो वस्तु आचरणासें करी जावे तिसकों अर्वाचीन कहते हैं। प्रश्नः- आचरणा किसकू कहते हैं ? उत्तर:- उत्तराध्ययनकी बृहद्वृत्तिका करणहार महाप्रभाविक स्थिरापद्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy