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________________ ३१६ श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग - २ बहुश्रुते करी, टीका सर्व सूत्रनी जूनी सिद्धसेनाचार्यनी करी छे, ए रीते छे ते महानिशीथ सूत्रना वचनने सामान्य कहे तिके ज सामान्य पुरुष जाणवा तथा श्री दशवैकालिकनी मोटी टीका चौदसेंने चौमालिस शास्त्रना कर्त्ता सुविहित गच्छना धोरी श्री हरिभद्रसूरिनी रचेली छे, ते टीका मध्ये पण एम लख्युं छे जे इरियावही पडिक्कम्या विना जो कसी क्रिया करीस अने इरियावहि पडिक्कम्या विना जो क्रिया करीस तो ते क्रिया अशुद्ध थशे ए रीते कह्युं छे । श्री हरिभद्रसूरिजी महाराजे तेहनो पाठ छे तथा "इर्यापथ प्रतिक्रमणाकृत्वा नान्यत्किमपिकुर्यात्तदशुद्धतापत्तेः ॥” इति दशवैकालिकवृतौ हारिभद्रयां ॥२॥ तथा श्री भगवती सूत्रना १२ शतकना पहेला उद्देशामां पोक्खली श्रावके इरियावहि पडिक्कमीने शंख श्रमणोपासकने वंदना नमस्कार करीने इम कह्युं ते सूत्र पाठ ए छें "तत्तेणं पोक्खली समणोवासए जेणेव पोसहसाला जेणेव संखेसमणोवासए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छिता गमणागमणे पक्किमति २ त्ता संखं समणोवासगं वंदति णमंसती " ए सूत्र मध्ये एम कह्युं जे शंख श्रमणोपासक पोषधमां वर्त्ततो हतो तेनी साथे वात करवी हती, ते पण पुक्खली श्रावके इरियावहि पडिक्कमीने करी भगवती सूत्रमां कही छे, तो सामायिकतो मुनिराजपणानी वानगी छे तेहनी क्रिया तो विरतीरुप प्रसादनी पीठिकानी समान इरियावहि पडिक्कम्या विना सामायिक शुद्ध थायज नही इति भगवती सूत्रे एहज पदनी टीका श्री अभयदेवसूरिजीए लखी छे “गमणागममाए पडिक्कमइति इर्यापथिकी प्रतिक्रामतीत्यर्थः" इति श्री भगवती वृत्तौ श्री अभयदेवसूरयः ॥ ४ ॥ तथा श्री धर्मघोषसूरिकृत संघाचार भाष्यमांहि पण कह्युं छे, जे पुक्खली श्रावकनी कथा सांभलीने इरियावहि पडिक्कमीनेज सामायिक करवुं ॥ यदुक्तं ॥ श्रुत्वैवमल्पमपि पुष्कलिनानुचीर्णमीर्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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