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________________ ३०६ श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२ साथ विरोधीतादिकी सूचना करनेवाली है। (२८) प्रश्न ॥ जब पूर्वोक्त १३ तेरां ग्रंथोमें प्रथम करेमि भंते और पिछे इरियावहीया पडिक्कमवी कही है, तो तुम अपने श्रावकोंकों ऐसी विधि क्यों नही बतलाते हो? उत्तर ।। हे सौम्य ! इन शास्त्रोंके पाठ अति गंभीर है, और मैरी मति अति तुच्छ है, इस वास्ते मैं इन शास्त्रकारोंका आशय नही समझ सकता हुँ । क्यों कि, श्री विजयसेनसूरिजी सेनप्रश्नमें ऐसा लिखते है॥ तथा च तत्पाठः ॥ तथा सामायिकाधिकारे पूर्वमीर्यापथिकीप्रतिक्रमणं शास्त्रानुसार्युत पश्चादिति प्रश्नोऽत्रोत्तरं ॥ सामायिकाधिकारे महानिशीथ-हारिभद्रियदशवैकालिकबृहवृत्याद्यनुसारेण युक्त्यनुसारेण सुविहित परंपरानुसारेण च पूर्वमीर्याथिकी प्रतिक्रमणं युक्तिमत्प्रतिभाति यद्यप्यावश्यकचूर्णी पच्छा इरिआवहीअए पडिक्कमइ इत्युक्तमस्ति परं तत्र साधुसमीपे सामायिक करणानंतरं चैत्यवंदनमपि प्रोक्तमस्ति ततः इर्यापथिकीप्रतिक्रमणं सामायिकसंबंधमेवेति कथं निश्चीयते तेन चूर्णिगत सामायिककरणसमाचारी सम्यक्तया नावगम्यते तदपि योगशास्त्रवृत्तिश्राद्धदिनकृत्यवृत्यादौ पश्चादीर्यापथिकीप्रतिक्रमणं दृश्यते तत्तु चूर्णिमूलकमेवेति तदूपर्येति पश्चादीर्यापथिकीप्रतिक्रमणं निर्णीतं कथं भवतीति || भाषा ॥ तथा सामायिकके अधिकारमें प्रथम ईरियावहीया करके करेमिभंतेकी पट्टी पढनी शास्त्रानुसार युक्त है वा प्रथम करेमिभंते पीछे इरियावही करनी इति प्रश्न । - इसका उत्तर, सामायिकके अधिकारमें महानिशीथ, हरिभद्रसूरिकृत दशवैकालिककी बडी वृत्ति आदि अनुसारे और युक्ति अनुसारे, और सुविहित परंपरानुसारे तो, प्रथम ईर्यावही करणी युक्त मालूम होती है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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