________________
२३६
हमारा मनोरथ है सो आपकों उत्तम सुखके दाता है.
(७९) तथा श्रीआवश्यक चूर्ण्यादिकों का पाठ 11 चाउम्मासिय संवच्छरिएसु सव्वेवि मूलगुणउत्तरगुणाणं आलोयणं दाउण पडिक्कमंति खित्तदेवयाए य उस्सग्गं करेंति केइपुण चाउम्मासि खित्तदेवयाए य उस्सग्गं करेंति केइपुण चाउम्मासिगे सिज्झादेवतो वि काउस्सग्गं करेंति ।
चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग - १
आवश्यकचूर्णौ ० चाउम्मासिए एगे उवसग्ग देवताए काउस्सग्गो कीरति संवच्छरिए खित्तदेवयाए वि कीरंति अब्भहिउ ॥
आवश्यकचूर्णौ । तथा श्रुतदेवतायाश्चागमे महती प्रतिपत्तिर्दृश्यते तथाहि सुयदेवयाए आसायणाए श्रुतदेवताजीए सुयमहिट्ठियं तीए आसायणा नत्थि साऽकिंचित्करी वा एवमादि आवश्यकचूर्णौ जा दिट्ठिदाणमित्ते ण देइ पाइणनरसुरसमिद्धि || सिवपुररज्जं आणारयाण देवीइ नमो ॥ आराधनापताकायां, यत्प्रभावादवाप्यंते, पदार्थाः कल्पनां विना ॥ सा देवी संविदे न स्ता, दस्तकल्पलतोपमा ॥ उत्तराध्ययनबृहद्वृत्तौ० प्रणिपत्य जिनवरेंद्र वीरं श्रुतदेवतां गुरुन् साधुन् ॥
आवश्यकवृत्तौ यस्याः प्रसादमतुलं संप्राप्य भवंति भव्यजिननिवहाः । अनुयोगवेदिनस्तां प्रयतः श्रुतदेवतां वंदे ॥ अनुयोगद्वारवृत्तौ ० । इस उपरले पाठ आवश्यकचूर्णीमें भवनदेवता अरु क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग करणा कहा है. चातुर्मासीमें एकैक भनवदेवताका कायोत्सर्ग करते है, और संवत्सरीमें भवनदेवता, क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग करते है यह कथन आवश्यकचूर्णिमें है.
तथा आगममें आवश्यकचूर्णिमें श्रुतदेवताकी विनय भक्ति करनी कही है. सो पाठ उपर लिखा है तथा जो श्रुतदेवी दृष्टि देने मात्रसें भगवंतकी आज्ञामें रत पुरुषोंकें नर सुरकी ऋद्धि देती है. यह कथन आराधनापताका
Jain Education International
,
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org