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________________ - २०६ चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ महाशास्त्रोंकी वृत्तिके करणेवाले श्रीहरिभद्रसूरिजी महाराजको ब्रह्मशांति आदिककी पूजा उचितकृत्य सम्मत है. इनोने श्रीपंचाशकजीमें इनका कथन करा है. इति गाथार्थः । सोइ कहते है. साहम्मिया इत्यादि गाथाकी व्याख्या । यह शासन देव जो है, सो सम्यग्दृष्टी है, महा शुद्धिमान है, सार्मिक है, इस वास्ते इनकी पूजा कायोत्सर्गादि उचित कृत्य करना श्रावकोंको योग्य है, केवल श्रावकोनेही इनोकी पूजादिक करणी ऐसें नही समजनां किंतु साधु संयमीभी इनोका कायोत्सर्ग करते है, सोइ कहते है। विग्घविघायण इत्यादि गाथा १००१ की व्याख्या । विघ्नविघात सो उपद्रवरुप विघ्नोके विनाश करणेके लीये यति साधुभी क्षेत्रदेवता आदिकका कायोत्सर्ग करते है. आदिशब्दसें भवनदेवतादिकका ग्रहण करना. इस वास्ते निःकेवल श्रावकोनेही इनोका कायोत्सर्ग करणा ऐसा नही समजना. अपितु साधुभी करते है. यह अपिशब्दका अर्थ है. क्योंकी पूर्वोक्त कायोत्सर्ग करणे यह कथन श्रुतकेवली श्रीभद्रबाहुस्वामीने कहे है. इति गाथार्थः । सोइ कहेत है. चाउम्मासि इत्यादि गाथा १००२ की व्याख्या ॥ चातुर्मासीमें, सांवत्सरीमें, क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग करणा, और पाक्षीमें भवनदेवताका कायोत्सर्ग करणा, एकैक आचार्य चातुर्मासीमेंभी भवनदेवताका कायोत्सर्ग करते है. इति गाथार्थः ॥ पूर्वपक्ष :- ननु इति प्रश्ने. जेकर चातुर्मास्यादिकमें क्षेत्रदेवादिकका कायोत्सर्ग करना श्रीभद्रबाहुस्वामीजीने कहा है तो फेर क्यों कर अब संप्रतिकालमें नित्य कायोत्सर्ग करते हो. इस प्रश्नका उत्तर ग्रंथाकारही देते है. संपइं इत्यादि गाथा १००३ व्याख्या ॥ सांप्रत कालमें नित्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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