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શ્રીચતુર્થસ્તુતિનિર્ણય ભાગ-૧
૧૮૩ वियडे ॥३॥ अह उवविसीतुं (इति तृतीयमावश्यकम् ॥३॥) सुत्तं, सामायिय मायियपढिय पयउ । अब्भुट्ठियम्मि इच्चाइ पढइ दुहउट्ठिउ विहिणा ॥४॥ दाउण वंदणंतो, पणगाइ सुजइ सुखामए तिनि । किइ कम्म करियापरियमाइ गाहातिगं पढई ।।५।। इति तुर्यमावश्यकम् इय सामायिय उस्सग्गसुत्त मुच्चरिय काउस्सग्गठिउ । चिंतइ उज्जोअचरितअइयार सुद्धिकए ॥६॥ विहिणा पारीअ (अयं लोगस्स द्वयात्मकश्चारिगशुद्धयुत्सर्गः ॥१॥) सम्मत्तस्स ६ सुद्धिहेउं च पढइ उज्जोअं । तह सव्वलोअ अरिहंत चेईआराहणुस्सग्गं ॥७॥ काउं उज्जोअगरं चिंतिय पारेइ सुद्धसम्मत्तो । अयं दर्शनस्य लो. ॥१,२॥ पुक्खरवरदीवढे कड्डइ सुअसोहण. निमित्तं ॥८॥ पुण पणविसोस्सासं, उस्सग्गं कुणइ पारए विहिणा । (अयं ज्ञानस्य लो० १ । ३॥) तो सयल कुशल किरिया, फलाण सिद्धाणं पढइ थय ॥९॥ अह सुअसमिद्धिहेडं, सुअदेवीए करेइ उस्सग्गं । चिंतेइ नमुक्कारं सुणइ वदेइ व तीइ थुई ॥१०॥ एवं खित्तसुरीए उस्सग्गं कुणइ सुणइ देइ थुई पढिउण पंचमंगल, मुवविसइ पमज्ज संडासे ॥१॥ इति पंचममावश्यकम् ॥५॥ पुव्वविहिणेव पेहिय, पुत्तिं दाउण वंदणं गुरुणो ॥ इति षष्ठमावश्यकम् ॥६॥ इच्छामो अणुसटुिंति, भणियं जाणुहितो ठाइ ॥१२॥ गुरुथुइ गहणे थुइ तिन्नि वद्धमाणक्खस्सरा पढई । सक्कत्थवं थपढिय कुणइ पत्थित्त उस्सग्गं ॥१३॥ एवं ता देवसिय ॥ इति देवसिक प्रतिक्रमणविधिः ॥१॥
राइमवि एवमेव नवरितहिं पढमं दाउं मिच्छामि दुक्कडं पढइ सक्वत्थयं ॥१॥ उठिय करेइ विहिणा, उस्सग्गं चिंतए अउज्जो ॥ अयं ज्ञानस्य कायोत्सर्गः लो० ॥१॥ बियं सणसुद्धिइ ॥ अयं द्वितीयो दर्शनस्य लो० ॥१२॥ चिंतएतत्थइममेव ॥२॥ तइए निसाइआरं जहक्कमं चिंतिउण पारेइ ॥ इति तृतीयश्चारित्रस्य लो० ॥१३॥ इति प्रथममावश्यकम् ॥१॥ सिद्धत्थयं पडित्ता, पमज्जसंडास भुव विसइ इति द्वितीयमावश्यकम् ॥२॥ पुव्वं च पुत्ति पेहण वंयणमालोय इति तृतीयआवश्यकम् सुतपढणं च ॥ वंदण खामण वंदण गाहतिगपढण (इति चतुर्थमोवश्यकम् ॥४॥ उस्सग्गो ॥४॥ तत्थयचिंतइ संजम, जोगाण न होइ जणमेहाणी ॥ तं पडिवज्जामि
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