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________________ १८२ चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ सक्कइतं हियए, धरेत्तु (इति पंचममावश्यकम् ॥५॥ पेहणपोत्तिं दाउं वंदण मसढो तं चिय पच्चक्खए विहिणा ॥८॥ इति षष्ठमावश्यकम् ॥६॥ इच्छामो अणुसठिंति भणीअ उवविसीअ पढइ तिन्नि थुइ ॥ मीउसद्देणं सक्कत्थयाइ तो चेइए वंदे ॥९॥ इति रात्रि प्रतिक्रमणे षडावश्यकानि ॥२॥ अह पक्खियं चउद्दसी, दिणंमि पुव्वं व तत्थ देवसियं सुत्तं तं पडिक्कमिओ, तो सम्म इमं कमंकुणइ ॥१०॥ मुहपोत्ती वंदणयं संबुद्धा खामणं तहा लोए ॥ वंदणपत्तेय खामणं च वंदणयमह सुत्तं ॥११॥ सुत्तं अल्भुठाणं, उस्सग्गो पुत्तिवंदणं तहयं ॥ पज्जंतिय खामणयं, तह चउरो त्योभं वंदणया ॥१२॥ पुव्वविहिणेव सव्वं, देवसियं वंदणाइ तो कुणई ॥ सिज्ज सूरि उस्सग्गो, भेउ संतिथय पढणेय ॥१३॥ एवं चिय चउमासे, वरिसे य जहक्कमं विहीणेओ ॥ पक्खचउमास वरिसे, सुनवरिनामंमि नाणत्थं ॥१४॥ तह उस्सग्गो जोआ, बारस (१२) वीसा (२०) समंगलचत्ता ॥ (४०) संबुद्धखामणत्ति पण सत्त साहूण जहसंखं ॥१५॥ इति श्रीपाक्षिकादिप्रतिक्रमण- षडावश्यकं संपूर्णम् ॥ (६१) इस उपरले पाठमें दैवसिक प्रतिक्रमणका विधि में चैत्यवंदना चार थुइकी करनी, श्रुतदेवता तथा क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग करना और तीन थुइयों कहनीयां कहीयां है. और राइ पडिक्कमणेके अंतमें चार थुइसें चैत्यवंदना करनी कही है. यद्यपि किसी किसी शास्त्रोक्त विधिमें सामान्य नामसें चैत्यवंदना करनी कही है. तहांभी प्रतिक्रमणेकी आद्यंतकी चैत्यवंदनामें चार थुइकी चैत्यवंदना जान लेनी क्योंकि उपर लिखे हूए बहुत शास्त्रोंमें विस्तार से चारही थुइपूर्वक चैत्यवंदना करनी कही है. सर्व आचार्योका एकही मत है । किसी जगे सामान्य विधि कहा है और किसी जगे विस्तारसें विधिका कथन करा है. सुज्ञ जन भवभीरूयोंकू तो शास्त्रकी सूचना मात्रसेंही बोध हो जाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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