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चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ पारिय तत्थुई दाउं सोउं वा पंचमंगलं पढिय संडासए पमज्झिय उवविसिय पुव्वं च पुत्ति पेहिय वंदणं दाउं इच्छामो अणुसट्टितिभणियज्झाणूहिठाउवद्धमाणक्खरस्सरा तिन्नि थुईउ पढिय सक्वत्थयथुत्तंच भणिय आयरियाई वंदिय पायच्छित्तविसोहणत्थ काउस्सग्गं काउं उज्जोयचउक्कं चिंतिइति ॥ देवसियपडिक्कमणविही ॥
(४४) भाषा । विधिप्रपाग्रंथमें प्रतिक्रमणेकि विधि ऐसा लिखा है. पूर्वे जो सामान्य प्रकारे प्रतिक्रमणेकी समाचारी कही थी. सो यह है के श्रावक अपने गुरुके साथ, अथवा एकला जावंति चेइयाइं यह दो गाथा, स्तोत्र, प्रणिधान ये वजके, शेष शक्रस्तव पर्यंत चार थुइसें चैत्यवंदना करकें, चार क्षमाश्रमणसें, आचार्यादिकोंकों वांदके भूमि उपर मस्तक लगाके, सव्वस्सवि देवसिय इत्यादि दंडकके सकल अतिचारोंका मिथ्या दुष्कृत देवे. पीछे उठके, सामायिक सूत्र कहके, इच्छामि ठाइउं काउस्सग्गं इत्यादि सूत्र पढके, लांबी भुजा करके, नाभीसें चार अंगुल हेठा, अरु जानुसे चार अंगुल उंचा, ऐसा चोलपट्टाकों कूहणीयोंसें धारण करी, संयती, कपित्थादि दोषरहित, कायोत्सर्ग करे. तिसमें यथाक्रमसें दिनके करे हुए अतिचारोंकों अपने हृदयमें धारके, नमस्कारसें पारके, लोगस्स पढके, संडासे पडिलेहके बैठे. बैठके शरीरके विना लागे बाहु युगल करके मुहपत्तिकी पंचवीस अरु शरीरकी पंचवीस पडिलेहणा करे. अरु श्राविका पीठ, हृदय, शिर वर्जके पंदरा पडिलेहणा करे. पीछे उठके, बत्तीस, दोष रहित पंचवीस आवश्यक शुद्ध द्वादशावर्त वंदणा करे. अंग नमावी, दोनो हाथोमें विधिसें मुखवस्त्रिका धरी, दिवसकें अतिचारोंकों प्रगट करणके अर्थे आलोयणा दंडक पढे. तदपीछे मुखवस्त्रिका, कट्यासन, पूछणा, वा पडिलेहके, वामा जानुं हेठा और दाहिना जानु ऊंचा करके दोनो हाथोंमें मुखवस्त्रिका रखके, सम्यग् प्रतिक्रमणा सूत्र पढे. तद पीछे द्रव्य भावें उठके
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