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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग - १ मिच्छामि दुक्कडं दीना. तब देवीनें कहा में कलकूं स्तुभके उपर श्वेतपताका करूंगी, और संघ तथा राजाकों कहे जेकरी श्वदिने प्रभातकों श्वेतवर्णकी पताका होवे, तो हमारा शुभ जानना अरु जो अन्य वर्णकी पताका होवे, त हमारा नही जानना. यह बात सुनकर राजाने अपने नौकरोंसें पहरा दिलवाया परंतु प्रवचन भक्त देवीनें प्रभातमें श्वेतपाताका कर दीनी तिसकूं देखकें राजा अरु प्रजाने उत्कृष्ट कल कल शब्द करकें कहा के बहुत कालतक यह जैनशासन जयवंत रहीयो, अरु संघ जयवंत रहो, जिनशासनके भक्त जयवंत रहो, इसीतरे सम्यक्दृष्टि देवताका स्मरण करनेसें प्रवचनकी प्रभावना देखकें बहुत लोकों जैनधर्मी हो गये मुनिभी सुगतिमें गया ॥ इति मथुराक्षपकवृत्तांतः ॥ इस वास्ते सम्यद्दष्टि देवताका अवश्यमेव कायोत्सर्ग करके थुइ कहनी चाहियें. (३८) अथ जे अधिकार जिस प्रमाणसें कहे है. तिनके हैं || गाथा || नव अहिगारा इह तिन्नि सुयपरंपरया, बीउ दसमो ११२ असंमोहार्थे लघुभाष्यकार प्रगट करते ललियवित्रा वित्तिमाइ अणुसारा ॥ इगारसमो ॥३५॥ इहां बारा अधिकारमेंसें पहिला, तीसरा, चौथा, पांचमा, छट्टा, सातवा, आठहवा, नवमा, अरु बारहवा यह नव अधिकार ललितविस्तरा नामा चैत्यवंदनाकी जो मूलवृत्ति है तिसके अनुसारसें कथन करे है ।। तथा च तत्रोक्तं ॥ यह तीन थुइयां सिद्धाणं इत्यादि जो है सो निश्चयसें कहनी चाहियें, और कितनेक आचार्य अन्य थुइयां भी इनके पीछें कहते है. परं तहां नियम नही है के अवश्य कहनी इस वास्ते मैने तिनका व्याख्यान नही करा है. जैसें यह "सिद्धाणं बुद्धाणं" पाठ पढके उपचित पुण्य समूहसें भरा हूआ उचितो विषे उपयोग करनां यह फल है. इसके जनावने वास्ते यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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