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________________ अथ श्रीमल्लिनाथस्य स्तुतिः - जिनपतीनां स्तुति: नुदंस्तनुं वितर 'मल्लिनाथ ! मे प्रियङ्करोचिररुचिरोचितां वरम् । विडम्बयन् वररुचिमण्डलोज्ज्वलः प्रियं गुरोऽचिररुचिरोचिताम्बरम् ॥ १ ॥ सिद्धान्त श्लाघनम् - श्रीकपर्दिस्मरणम् Jain Education International श्राशोमनमुनीश्वरकृता १९ श्रीमल्लिजिनस्तुतयः जवाद् गतं जगदवतो वपुर्व्यथा - कदम्बकैरवशतपञ्चसं पदम् । जिनोत्तमान् तुत दधतः स्रजं स्फुरतकदम्बकैरवशतपत्रसम्पदम् ॥ २ ॥ रुचिरा १' प्रवितनु' इति पाठान्तरम् । स सम्पदं दिशतु जिनोत्तमागमः शमावहन्नतनुतमोहरोऽदिते । स चित्तभूः क्षत इह येन यस्तपःशमावहन्नतनुत मोहरोदिते ॥ ३ ॥ रुचि द्विपं गतो हृदि रमतां दमश्रिया प्रभाति मे चकितहरिद्विपं नगे । वटाये कृतवसतिश्च यक्षराट् - रुचिरा प्रभातिमेचकितहरिद् विपन्नगे ॥ ४ ॥ १९ ॥ - रुचिरा For Private & Personal Use Only -- --- १९ www.jainelibrary.org
SR No.004895
Book TitleShobhan Stuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal R Kapadia
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2006
Total Pages562
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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