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मुनिराजकृतायाः]
भूमिका " संप्रति जे जयवंता हुंता, 'तप' गच्छ शोभाकारी जी
श्रीआनंदविमल मूरिदीक्षित, कवि धर्मसिंह मति सारी जी॥९॥ तस शिष्य श्रीजयविमल विबुधवर, कीर्तिविमल शिष्य तेहना जी। शुद्धाचारी शुद्ध आहारी, बिरुद कहीए तेहना जी ॥ १०॥ श्रीविनयविमल पंडित वैरागी, शिष्य तेहना लहीये जी। श्रीविजयमममूरिनी आणा, शीश धरी निर( व )हीये जी ॥ ११ ॥ धीरविमल पंडित तस सेवक, समय माने शुद्ध वाणी जी। शक्ति प्रमाण क्रिया अनुसरता, शीखवता भवि प्राणी जी ॥ १२॥ 'वर्धमान तप कारक तेहना, लब्धिविमल तस सीसा जी। लघु सेवक नयविमल विबुधनी, बुधमा सबल जगीसा जी॥ १३ ॥ सुयण सहाये चित्त निरमाये, उपसंपद करी लीधुं जी। आचारजपदे ज्ञानविमल इति नाम थयुं सुप्रसिद्धं जी ॥ १४ ।। निधि युग मुनि शशि ( १७४९ ) संवत माने, फागण शुदि पंचमी दिवसे जी। पत्तन नयर तणे तस पासे, पद पाम्युं शुभ देशे जी ॥१५॥ विजयप्रभसूरिने पोटे, पक्ष संवेग सुहाया जी। ज्ञानविमल सूरि संप्रति दीपे, तेजे तरणि सवाया जी ॥ १६ ॥ तेणे ए आनंदमंदिर नामे, रास कर्यो सुख हेते जी । सागर-विजय बिहु समवाये, सुणवाने संकेते जी ॥ १७ ॥ राधनपुर शहेरे प्रारंभ्यो, संपूरण थयो तिहाहि जी।
नभ मुनि मुनि विधु ( १७७०) संवत माने, अधिक अधिक उच्छाहे जी ॥१८॥ एक शत एकादश छे ढाला, नव नव बंध रसाला जी ।
शत छोहोत्तेर गुणयाल ग्रंथे, भणतां मंगलमाला जी॥ २१॥" १एतेषां हर्षविमलेत्यपरमभिधानमिति समर्थ्यते श्रीनयविमलगणिकृतसाधुवन्दनागतेन निम्नलिखितेनोल्लेखेन
" श्रीआनन्दविमल सूरीश्वर हस्तदीक्षित गुणधाम जी। हर्षविमल पंडित वैरागी, धर्मसिंह धरे नाम जी ॥३॥ तास शिष्य जयविमल अनोपम, गणिवर गुणमणिदरियो जी।
कीर्तिविमल कवि तेहनो गाजे, ज्ञानचरित्र जल भरियो जी ॥४॥" २ अनेन समर्थीभवति ८६तमपृष्ठस्थ उल्लेखः । अपरश्चावगम्यते यात एतेषां सूरिपदप्रदानकारि श्रीविजयप्रभसूरिभिः । अतो गुरुरूपेण तेषां नाम निरदेशि एभिः ।
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